चुनावी आहट के तेज़ होते
ही राजनीतिक जंग तेज़ हो चुकी है ।जहाँ कांग्रेस सत्ता में बरक़रार रहने को जतन कर
रही है। वहीँ भाजपा कांग्रेस को महंगाई,भ्रष्टाचार के मुद्दों पर मोदी के सहारे
सत्ता से बेदखल करने पर आमादा है। इन दोनों की जंग के बीच तीसरे मोर्चे का गठन दिलचस्प
मोड़ ले रहा है।इस उठापटक के बीच आम आदमी पार्टी ने जन लोकपाल बिल पेश न कर पाने की
विफलता का ठीकरा भाजपा-कांग्रेस के सर पर फोड़ते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है । इस
इस्तीफे की धमक लोकसभा चुनाव तक जा सकती है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता ।
कांग्रेस जहाँ संवैधानिक दायरे की आड़ में बिल का विरोध का दावा कर रही है , वहीँ
भाजपा भी बिल का समर्थन करते हुए भी सहमत नज़र नहीं आ रही है ।केजरीवाल का साथ छोड़
चुके अन्ना हजारे भी इस मुद्दे पर केजरीवाल के साथ नजर आ रहे हैं ।आप के
रणनीतिकारों को ये पक्का भरोसा है कि लोकसभा चुनावों में लाभ के साथ साथ आगामी
दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्हें भरपूर सफलता मिलेगी । देश की सत्ता पर 2014 में कौन
काबिज होगा, राजनीतिक पर्यवेक्षक इसके कयास लगा रहे हैं । परन्तु
लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर है ,इससे इनकार नहीं किया जा सकता । दिल्ली में आप के नये राजनीतिक
प्रयोगों की ऐतिहासिक कामयाबी और उसके बाद नाटकीय ढंग से , सत्ता से विदाई के बाद
नजरें इस बात पर भी हैं कि 2014 में
भारतीय राजनीति जाति-धर्म, परिवारवाद, क्षेत्रवाद आदि से जुड़े पारंपरिक चुनावी समीकरणों
में ही उलझी रहेगी या भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी जैसे आम आदमी से जुड़े मुद्दे
चुनावी राजनीति में बड़ी भूमिका निभायेंगे । इतना तय है कि 2014 के आम चुनाव को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, संप्रदायवाद आदि मुख्य मुद्दे प्रभावित करेंगे, क्योंकि इन मुद्दों को हल करने का तरीका कोई नहीं बता
रहा है । देश की सत्ताधारी पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी सिर्फ पीएम कंडीडेट कौन
होगा इस पर बहस कर रही हैं ।
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