गुजरात के
मुख्यमंत्री और भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी को पुरे देश की पहली पसंद
बताया जा रहा है । विभिन्न सर्वेक्षणों में उनको सर्वाधिक मत प्राप्त हुए हैं ।कांग्रेस
की नाकामियों को भुनाने के लिए नरेन्द्र मोदी अपनी चिर-परिचित आक्रामक मुद्रा
अपनाये हुए हैं ।उनको भ्रष्टाचार,महंगाई और विकास के नाम पर देश में समर्थन मिलता
दिख रहा है ।१९९८ और १९९९ में भाजपा अटल बिहारी वापपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ी
थी। संजीदा, समझदार और अनुभवी राजनेता
की छवि रखने वाले वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर उसे दोनों बार
सत्ता हासिल हुई थी, भले ही पहली सरकार १३ दिन
चली, लेकिन अगली सरकार १ सीट का इजाफा करते हुए १८३
का आंकड़ा छूने में सफल हुई, और अन्य पार्टियों
के सहयोग से सरकार बनाने में सफल रही और एक सफल कार्यकाल पूरा किया। आज स्थितियां १९९८
या १९९९ वाली नहीं हैं, जब भाजपा अन्य सहयोगी पार्टियों की सहायता से सिंहासन
पर बैठी थी। अटलबिहारी वाजपेई जैसा एक सशक्त और दूरदर्शी सोच का व्यक्ति भाजपा का अगुवाई
कर रहा था। लेकिन आज भाजपा के कुनबे के कई पुराने साथी अलविदा कह चुके हैं । नरेंद्र
मोदी के चुनाव प्रचार समिति अध्यक्ष बनने पर शुरू हुआ विवाद पुराने साथी नीतीश
कुमार की विदाई के रूप में सामने आया । जनता दल यूनाइटेड, जिसके अध्यक्ष
शरद यादव हैं, ऐसी १३वीं पार्टी थी, जिसने भाजपा का साथ छोड़ा। अब एनडीए में केवल
शिवसेना, शिरोमणि अकाली बादल और छोटी छोटी आठ पार्टियां
हैं । इस बीच लाल कृष्ण आडवाणी की नाराज़गी
ने पार्टी की अन्दुरुनी कलह को भी उजागर किया । हालांकि इस बात का चुनावों पर
कितना असर पड़ेगा , कहना मुश्किल है । भाजपा को अगर सत्ता हासिल करनी है तो उसको एक
जादूई आंकड़ा हासिल करना होगा। अकेली भाजपा को २०० से अधिक सीटें बटोरनी होंगी। मौजूदा
समय में भाजपा के नहीं, बल्कि एडीए के
पास केवल 138 सीटें हैं। भाजपा को गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, यूपी, बिहार एक बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा। यहां से
आने वाले आंकड़े भाजपा की किस्मत बदल सकते हैं। हालांकि गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और
छत्तीसगढ में भाजपा की राज्य सरकारें हैं और लोकसभा चुनावों में यहां भाजपा को बढत
मिलती दिख रही है। निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव के नतीजों के
बाद भाजपा का मनोबल ऊंचा है ।
No comments:
Post a Comment