विदेशों में कालाधन रखनेवाले
कुछ नामों को बताने में सरकार के संकोच और इस संबंध में सिर्फ राजनीति से यह मुद्दा
कालेधन को वापस लाने और दोषियों को दंडित करने के उद्देश्य से भटक कर आरोप-प्रत्यारोप
तक सिमट कर रह गया है । ऐसे में कालाधन वापस आने का सपना संजोये लोगो की
तीखी प्रतिक्रिया भी स्वाभाविक है। स्विस बैंकों के अलावा भी कई देशों में कालाधन
छुपाया गया है । भारतीयों द्वारा विदेश में जमा संदिग्ध कालेधन के एक और मामले में
जांच एजेंसियां 600 नए नामों और पहचानों की जांच कर रही है। जिनकी सूची पिछले वित्त
वर्ष में एक ‘सूत्र’ ने भारत को प्रदान की थी। जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा
किया है, वे आम भारतीय नागरिक नहीं हैं, बल्कि काला धन जमा करने वाले लोगों में देश के
बड़े-बड़े नेता, प्रशासनिक अधिकारी और उद्योगपति शामिल हैं। इस संबंध में किस सरकार ने कितनी कोशिश की, इन कोशिशों का नतीजा
क्या निकला और आगे सरकार क्या-क्या उपाय करनेवाली है, इन सवालों के जवाब
न तो यूपीए सरकार के पास थे और न ही एनडीए सरकार के पास ही हैं । सबसे बड़ा सवाल ये है कि देश की जनता की नामों में
दिलचस्पी तो है लेकिन वो ये भी जानना चाहती है कि पैसे कब आएंगे। क्या विदेश से पैसे
लाना सही में काफी मुश्किल काम है ? और क्या नाम में उलझा कर बीजेपी सिर्फ अपने चुनावी
वादे को पूरा करने की रस्म भर निभा रही है ? अगर इस काले धन का 10 प्रतिशत हिस्सा भी
भारत में आ जाए, तो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो सकता है ।
ऐसे में गंभीर प्रयास होना जरूरी हैं । काले धन को वापस लाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी
है कि सरकार प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दे।
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