दिल्ली में हुए “उबेर टैक्सी काण्ड” के बाद एक बार फिर देश
में महिलाओं पर अनवरत जारी जुल्मों-सितम पर बहस छिड गई है। आज महिलाएं जहां एक ओर
अपनी योग्यता, पराक्रम और उद्यमशीलता से रोज नए प्रतिमान बना रही हैं, वहीं महिलाएं का एक बड़ा
हिस्सा शोषण, अत्याचार और हिंसा का शिकार हैं।दिन-प्रतिदिन बढ़ते मामलों ने घर से बाहर निकल
कर बराबरी की चाह रख रही महिलाओं को दुबकने पर मजबूर कर दिया है । आज
बलात्कार,शारीरिक शोषण से आगे बढ़ कर बात हत्या तक पहुँच चुकी है । कई बार इन
घटनाओं के इतने वीभत्स रूप सामने आते हैं कि उनको शब्दों में बयान नहीं किया जा
सकता ।
हमारी कानून का पालन कराने तथा न्याय दिलाने की प्रणालियां, बहुत ही खस्ता हालत में हैं। यह बहुत ही जरूरी है कि महिलाओं के खिलाफ ऐस अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने के लिए, विशेष अदालतें कायम की जाएं।अदालतों और जजों की कम संख्या न्याय प्रक्रिया को लम्बा और दुरूह कर देते हैं | हमारे देश में अपराध के लिए सजा दिए जाने का रिकार्ड इतना खराब होने के चलते ही, अपराधियों के मन में अब कानून का कोई डर ही नहीं रह गया है।आबादी और पुलिस का अनुपात, दुनिया भर में सबसे निचले स्तर पर है। जब तक कानून का पालन कराने वाले बलों की कतारों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी करने तथा उन्हें समुचित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं, हालात सुधारने वाले नहीं हैं । आप को जान कर हैरानी होगी कि 2011 में बलात्कार के दर्ज हुए मामलों में से पूरे 36 फीसदी से अधिक में तो कोई जांच भी अब तक पूरी नहीं हो पायी है। तो फिर 2011 के बाद के मामलों की क्या स्थिति होगी इसका अंदाज़ आप खुद लगा सकते हैं।
हमारी कानून का पालन कराने तथा न्याय दिलाने की प्रणालियां, बहुत ही खस्ता हालत में हैं। यह बहुत ही जरूरी है कि महिलाओं के खिलाफ ऐस अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने के लिए, विशेष अदालतें कायम की जाएं।अदालतों और जजों की कम संख्या न्याय प्रक्रिया को लम्बा और दुरूह कर देते हैं | हमारे देश में अपराध के लिए सजा दिए जाने का रिकार्ड इतना खराब होने के चलते ही, अपराधियों के मन में अब कानून का कोई डर ही नहीं रह गया है।आबादी और पुलिस का अनुपात, दुनिया भर में सबसे निचले स्तर पर है। जब तक कानून का पालन कराने वाले बलों की कतारों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी करने तथा उन्हें समुचित प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं, हालात सुधारने वाले नहीं हैं । आप को जान कर हैरानी होगी कि 2011 में बलात्कार के दर्ज हुए मामलों में से पूरे 36 फीसदी से अधिक में तो कोई जांच भी अब तक पूरी नहीं हो पायी है। तो फिर 2011 के बाद के मामलों की क्या स्थिति होगी इसका अंदाज़ आप खुद लगा सकते हैं।
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