सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!
AMIR KHURSHEED MALIK

Friday, November 28, 2014

महिला उत्पीडन : हालात बदहाल

आज बलात्कार,शारीरिक शोषण से आगे बढ़ कर बात हत्या तक पहुँच चुकी है । कई बार इन घटनाओं के इतने वीभत्स रूप सामने आते हैं कि उनको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता । महिलाओं की  सुघड़ता, कुशलता, प्रखरता एवं योग्यता के बदले उसके रंग-रूप, यौवनकी मानसिकता हावी हो गई है।और इसी  कुत्सित मानसिकता का भयावह दुष्परिणाम आज हमारे सामने बलात्कार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्याएं एवं नारी हिंसा के रूप में सामने आया है । पिछले कुछ दिनों पर नज़र डालें तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश,छत्त्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,पश्चिम बंगाल, मिजोरम सहित देश के अलग अलग कोने में नारी के पुरुषों की हवस का शिकार बनने की ख़बरें आई हैं | देश में मे महिलाओ पर ज़ुल्म और रेप की घटनाओ से इंसानियत शर्मसार हुई है स्वयं सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि बलात्कार से पीड़ित महिला बलात्कार के बाद स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती है, और जीवनभर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है, जिसे उसने नहीं किया। ऐसी स्थिति में सामाजिक प्रताड़ना से इनकार नहीं किया जा सकता । उस पर आरोपियों से पहले घर-परिवार से ही दबाव बनना शुरू हो जाता है । लेकिन इस सब के बीच हैं आंकड़ों का सच, जो बताते हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराधों के अलावा अभियुक्तों के विरुद्ध पुख्ता सबूत न होने की वजह से भी उनकी रिहाई हो जाती है
आंकड़े बताते हैं कि 97 फीसदी मामलों में आरोपी महिला का जानकार होता है। उसमे से भी 40 फीसदी करीबी रिश्तेदार या पडोसी होते हैं । विशेषज्ञों की राय में यह एक सामाजिक समस्या है और ऐसे अपराधों पर नकेल कसने के लिए रणनीति बनाना मुश्किल काम है। दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह एक सामाजिक समस्सया है। जिसका वास्तविक हल समाज के बीच से ही आ सकता है । जब पीडिता दबाव और तिरस्कार का सामना करती है , दोषी के बच निकलने के आसार और बढ़ जाते हैं |
कोई घटना होने पर सामाजिक संघटनो का प्रतिरोध सड़कों पर नज़र आता है ।उस वक़्त कार्यवाही के लम्बे चौड़े वायदे होते हैं । तत्पश्चात व्यवस्था फिर उसी ढर्रे पर सवार नज़र आती है । क्या हमें बार-बार बलात्कार की घटना हो जाने के बाद प्रतिवाद और आंदोलन की जरूरत है ? आखिर क्यों नहीं एक सशक्त कानून और उसका पालन करता तंत्र सामने आता ? आखिर क्यों नहीं हमारा समाज पीडिता के पक्ष में , और आरोपी के विरोध में मजबूती के साथ नज़र आता है ?

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