शाहजहांपुर की
रंगयात्रा की नींव के पत्थरों में से एक उल्लेखनीय नाम चंद्रमोहन महेन्द्रू का है ! जनपद में रामलीला के नायाब मंचन हों , या फिर पारसी
रंगमंच से प्रभावित ऐतिहासिक नाटकों का दौर ! आधुनिक रंगमंच के तकनीकी पक्षों से
सजे-संवरे सामाजिक नाटको का मंचन हो , या फिर राष्ट्रीय स्तर पर शाहजहांपुर के
समर्द्ध रंगमंच की पताका फहराने की बात हो , चंद्रमोहन “महेन्द्रू” का नाम हर जगह ऊँचाइयों पर रहा !
चंद्रमोहन “महेन्द्रू” का जन्म 19 नवम्बर 1944 को पाकिस्तान में एक पंजाबी
क्षत्रिय परिवार में हुआ ! उनका परिवार बंटवारे के बाद देहरादून,लुधियाना होता हुआ 1955 में
शाहजहांपुर आ गया ! चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को रंगकर्म
विरासत में मिला था ! उनके पिता स्वर्गीय चमन लाल “महेन्द्रू” एक अच्छे
रंगकर्मी और गायक थे ! उनसे मिली प्रेरणा और प्रोत्साहन की बदौलत चंद्रमोहन “महेन्द्रू” का रुझान
धीरे-धीरे रंगकर्म की ओर बढ़ता चला गया ! आर्थिक झंझावातों नें उनकी राह रोकी , पर
उनका यह जूनून समय के साथ बढ़ता चला गया ! अपनी पढाई के दौरान ही उन्हें “सिकंदर और पोरस” नाटक में अभिनय
का मौका मिला ! यह उनके रंगमंच का पहला पडाव था ! 1962 में भारत-चीन युद्ध के
दौरान ऑर्डिनेंस क्लोदींग फैक्ट्री में भर्ती होने का मौका मिला , जिससे परिवार के
हालात सुधारने के साथ-साथ रंगमंच से प्रभावी तरीके से जुड़ने का मौका भी जय नाट्यम
संस्था के मार्फ़त उन्हें मिल गया !
इसी दौरान शाहजहांपुर में नाटको की सफलता से उत्साहित होकर “ऑर्डिनेंस
ड्रामेटिक क्लब” का गठन किया गया !
जिसमें चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को अपनी प्रतिभा
दिखने का मौका मिला ! 1971 में चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को “ऑर्डिनेंस ड्रामेटिक क्लब” की रामलीला में प्रवेश
मिल गया ! उन्होंने रामलीला में रावण,परशुराम,दशरथ जैसी चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं
उन्होंने निभाई ! इस बीच उनका जुडाव जय नाट्यम संस्था से बना रहा ! इसी दौरान शाहजहांपुर
के रंगमंच में क्रांतिकारी बदलाव आया ! आधुनिक रंगमंच ने शाहजहांपुर में दस्तक दी
! साहित्यिक संस्था “अनामिका” नें नाट्य क्षेत्र में पदार्पण किया ! भोपाल के नाट्य
निर्देशक कमल वशिष्ठ ने आधुनिक रंगमंच की बारीकियों को एक वर्कशॉप के द्वारा
समझाया ! तत्पश्चात असग़र वजाहत के नाटक “इन्ना की आवाज” का मंचन भी किया
गया ! इस मंचन में चंद्रमोहन “महेन्द्रू” की प्रतिभा का
बेहतरीन पक्ष सामने उभर कर आया ! इसी
दौरान चेखव की कहानी “गिरगिट” का भी मंचन किया गया ! 1984 में आयोजित एक और वर्कशॉप में अमरेन्द्र
सहाय अमर ने नाटक “कोणार्क” को तैयार कराया , जिसकी केन्द्रीय भूमिका के लिए चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को चुना गया !
उन्होंने अपने पात्र के साथ पूरा न्याय किया ! इस नाटक के बाद में कई मंचन भी हुए
! 1985 में “एक था गधा उर्फ़ अलादाद खान” में भी उनकी
भूमिका प्रशंसा का विषय बनी !
1986 में बनी “कोरोनेशन” के संस्थापक ज़रीफ़ मलिक आनंद नें अपनी पहली प्रस्तुति “प्रमोशन” के निर्देशन का
दायित्व चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को ही सौंपा !
निर्देशन से जुड़ने के बाद उन्होंने “जनता पागल हो गई है”, “छत पुरानी” , “सिंहासन खाली है” आदि कई प्रमुख
प्रस्तुतियों को निर्देशन से सवारा !उन्होंने टेलीफिल्म “सलाह”में भी काम किया !
1989 में संस्कृति पर फासीवादी हमले के विरुद्ध हुए प्रदर्शनों में भी उनकी भूमिका
उल्लेखनीय रही !
शाहजहांपुर में नुक्कड़ नाटक को लाने और निर्देशन का सौभाग्य चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को ही मिला ! 1989 में जसम के बैनर तले “जागो-जागो” के तीन मंचन एक उदाहरण बन गए !राजेश कुमार लिखित नुक्कड़ नाटक “हमें बोलने दो” ,महेश सक्सेना द्वारा लिखित नाटक “दिशा” ,सर्वेश्वर दयाल शर्मा रचित “बकरी”, में उन्होंने निर्देशन किया ! “बकरी” को अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला ! राजेश कुमार के साथ उन्होंने “आखिरी सलाम” का संयुक्त निर्देशन किया !प्रेमचंद की “पूस की रात” के अपने निर्देशन में रौनक अली के अभिनय से संवरे 50 शो कराये , जोकि अपने आप में एक कीर्तिमान बन गया ! 2005 में भुवनेश्वर के नाटक “सिकंदर” का निर्देशन,चंद्रमोहन दिनेश की कहानी “एक दा विकास खंडे” का नाट्य रूपांतरण और निर्देशन ,मीरा कान्त के नाटक “भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर” का निर्देशन उनकी विशिष्ठ उपलब्धि रही ! इसके अलावा भी ढेरों नाटकों और प्रस्तुतियों में वह भागीदार रहे हैं !
चंद्रमोहन “महेन्द्रू” को 1998 में जनपद रत्न से सम्मानित किया गया !इसके अतिरिक्त उन्हें परिक्रमा,संकल्प,गांधी पुस्तकालय, ऑर्डिनेंस ड्रामेटिक क्लब,संस्कृति एकता मंच,द्वारा भी सम्मानित किया गया ! उनको गांगुली स्मृति सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला ! राष्ट्रीय साहित्य कला संस्थान द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया ! मशहूर फ़िल्मी कलाकार राजपाल यादव ने भी उनके नाटक में काम किया है !चंद्रमोहन “महेन्द्रू” की रंग यात्रा को कुछ शब्दों में समेटना मुश्किल है ! शाहजहांपुर का रंगकर्म उनके बहुमूल्य योगदान का गवाह है !
No comments:
Post a Comment