नवाबों के शहर रामपुर का
नाम अपनी तहज़ीब , लज़ीज़ खानों से लेकर रज़ा लाइब्रेरी तक के लिए मशहूर है लेकिन
हम सब नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश का यह छोटा सा जिला अमन के सिपाही “ गांधी जी ” से भी एक ऐसा अटूट रिश्ता कायम कर गया , जिसकी मिसाल दुर्लभ है ।
जैसा
कि हम सभी जानते हैं की महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली के राजघाट पर
मौजूद है । लेकिन एक सच ऐसा भी है जिससे लोग अनजान हैं । राष्ट्रपिता
की अस्थियां रामपुर में नवाब गेट के सामने मुख्य चौक पर स्थित समाधि में भी दफन
हैं। यानी गांधी जी की एक समाधि रामपुर में भी मौजूद है। एक तरफ जहाँ पूरा देश
राष्ट्रपिता को श्रध्दांजलि देने राजघाट पहुँचता है , रामपुर की इस भूली-बिसरी धरोहर
से लोग अनजान हैं । तीस जनवरी,
1948 को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई, तत्कालीन नवाब नवाब रजा अली
खां इस घटना से काफी व्यथित हो गए । 10 फरवरी को नवाब साहब अपने
कुछ रिश्तेदारों और कुछ प्रतिष्ठित लोगों के साथ बापू की अस्थियां लेने दिल्ली
पहुंच गए । नवाब रजा अली खां के साथ पंडित राधे मोहन चौबे ,पंडित राम रतन, पंडित राम चंद्र, राम गोपाल शर्मा, और मदन मोहन चौबे इत्यादि
थे। महात्मा गांधी के बेटे देवदास गांधी से उन्होंने अस्थियां हासिल कीं । अस्थियों
के लिए रामपुर से 18 सेर वजनी अष्टधातु का कलश ले जाया गया था । 11 फरवरी को सुबह 9 बजे स्पेशल ट्रेन से
अस्थि कलश रामपुर लाया गया। रामपुर में बापू की याद में जन सैलाब उमड़ पड़ा था । 12 फरवरी को रामपुर में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया
था । उल्लेखनीय है कि बापू की हत्या के अगले दिन 31 जनवरी से ही रामपुर रियासत में
13 दिन का सरकारी शोक घोषित किया गया था ।
सर्वधर्म सभा के उपरान्त
अस्थिकलश को हाथी पर रख कर कोसी नदी पर ले जाया गया । यहाँ पर नवाब रजा अली खां नें
कुछ अस्थियां कोसी में विसर्जित की । शेष बची अस्थियों को मातमी धुन के साथ नवाब
गेट लाया गया । यहाँ पर इनको चांदी के कलश में रखकर दफ़न कर दिया गया । और इस तरह
शान्ति के उस अमर अग्रज से रामपुर ने अपना नाता सदा के लिए जोड़ लिया । (आमिर खुर्शीद मलिक )
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