वैश्विक मंदी से दुनिया को बचाने के लिए आज पूरे विश्व के देशों
को लगता है कि उनके देश का काला धन यदि निकल कर वापस आ जाए तो मंदी को मात दी जा सकती
है। स्विस बैंक सहित तमाम विदेशी
बैंकों में जमा काले धन में भारतीयों की हिस्सेदारी ज्यादा है। ऐसे में यहाँ उम्मीदें भी ज्यादा हैं । पर अभी
तक विदेशी बैंकों में जमा काले धन को भारत वापस लाने के लिए हमारे पास ठोस कानून
और सरकारी इच्छा शक्ति दोनों नहीं है । भाजपा सरकार का
प्रमुख चुनावी मुद्दा कालाधन अब उनके लिए ही गले की हड्डी बन चुका है ।
दिसंबर-13 तक स्विस बैंकों में जमा भारतियों के धन का जो आकड़ा
है, वह भी चौकाने वाला
है। दिसंबर-12 तक के धन के तुलना में 42% ज्यादा है। एक तरफ देश का काला धन विदेशी
बैंकों से लाने के लिए के लिए देश में धरना-प्रदर्शन हो रहा था , वहीँ भारत का काला-धन
विदेशी बैंकों में ज्यादा जमा हो रहा था । अवैध तरीके से देश के अंदर कमाये गए
काले धन को विदेशी बैंकों में जमा कराने में अहम भूमिका निभाने वाले हवाला एजेंट
लचर कानून के चलते देश को चूना लगा कर अधिकारियों, नेताओं और
उद्योगपतियों के खाते में जमा कर देते हैं।
इस संबंध में किस सरकार ने
कितनी कोशिश की, इन कोशिशों का नतीजा क्या निकला और आगे सरकार क्या-क्या उपाय
करनेवाली है, इन सवालों के जवाब न तो यूपीए सरकार के पास थे और न ही एनडीए
सरकार के पास ही हैं । सबसे बड़ा सवाल ये
है कि देश की जनता की नामों में दिलचस्पी तो है लेकिन वो ये भी जानना चाहती है कि पैसे
कब आएंगे। क्या विदेश से पैसे लाना सही में काफी मुश्किल काम है ? और क्या नाम में
उलझा कर बीजेपी सिर्फ अपने चुनावी वादे को पूरा करने की रस्म भर निभा रही है ? अगर
इस काले धन का 10 प्रतिशत हिस्सा भी भारत में आ जाए, तो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था
को काफी फायदा हो सकता है । ऐसे में गंभीर प्रयास होना जरूरी हैं । काले धन को वापस
लाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार प्रबल इच्छा शक्ति
का परिचय दे।
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