सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!
AMIR KHURSHEED MALIK

Sunday, November 30, 2014

क्रांतिकारी साहित्य का विशिष्ठ नाम : सुधीर “विद्यार्थी”

आइये आज रूबरू होते हैं किसी ऐसे नाम से ,जिसमें देश के स्वतंत्रता संग्राम को उसके वास्तविक स्वरुप के साथ उकेरने का जूनून हो ।  जो सफल नाटककार हो, अभिनेता, लेखक,कवि जैसे अनगिनत नैसर्गिक तमगे उसमें अपने विशिष्ठ स्वरुप में विराजमान हों ।  यकीनन ऐसे विलक्षण पैमाने पर सुधीर “विद्यार्थी” जैसा नाम ही सटीक बैठता है । क्रांतिकारी साहित्य से अलख जगाने वाला यह लेखक श्रमिक आन्दोलन से लेकर सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाना जाता है ।  “भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का सही मूल्यांकन नहीं हुआ है” ऐसा मानने वाले सुधीर “विद्यार्थी” ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की परतों को ज़मीनी स्तर पर जा कर ढूंढा है पैदल यात्रा हो या साइकिल से दूर दराज़ के क्षेत्र में खोजबीन , सुधीर “विद्यार्थी” नें कोई कसर नहीं छोड़ी । यही कारण है कि क्रांतिकारी साहित्य में उनकी खोज और कृतित्व अपना बेमिसाल स्थान रखते हैं । इन किताबों और लेखों से शहीदों की दुर्लभ जानकारियाँ लोगों तक पहुँच पाई । शहीदों के परिवारों तक पहुँच कर उनको आर्थिक सहायता और सही पहचान दिलवाने में भी उनके प्रयास अनूठे रहे हैं । यकीनन इन सबके लिए जिस इन्क़लाबी तेवरों की ज़रूरत होती है , वह सुधीर “विद्यार्थी” के अन्दर हैं ।


1 अक्टूबर 1953 को जन्में सुधीर “विद्यार्थी” का पूरा जीवन भारत की क्रांति गाथा को समर्पित रहा । सुधीर “विद्यार्थी” नें अशफाकउल्ला, रोशन सिंह , भगत सिंह , मौलवी अहमदुल्लाह शाह,बटुकेश्वर दत्त और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई शहीदों और क्रांतिकारियों पर दर्जनों किताबे लिखीं हैं । उनके कृतित्व में क्रांतिकारी विरासत को सच्चाई को अगली पीढ़ी तक सही रूप में पहुचाने का जुनून साफ़ नज़र आता है । उनकी प्रमुख कृतियों में अशफाकउल्ला और उनका युग, शहीद रोशन सिंह ,उत्सर्ग,भगत सिंह की सुनें, आमादेर विप्लवी, शहीद मौलवी अहमदुल्लाह शाह,काला पानी का ऐतिहासिक दस्तावेज़,अग्निपुंज जैसे अनगिनत नाम शामिल है । अपराजेय योद्दा कुंवर भगवान सिंह,मेरा राजहंस,शहीदों के हमसफ़र,गदर पार्टी से भगतसिंह,  क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त,आज का भारत और भगतसिंह, क्रांति की इबारतें आदि से उनको काफी चर्चा मिली । एनसीआरटी की कक्षा 11 की पुस्तक साहित्य मञ्जूषा में क्रांति की प्रतिमूर्ति : दुर्गा भाभी, तथा कक्षा 5 में शहीद रोशन सिंह लेख पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये गए हैं । विभिन्न विश्वविद्यालयों में क्रांतिकारी आन्दोलन पर उनके व्याख्यान सराहे जा चुके हैं । शाहजहांपुर में शहीद रामप्रसाद बिस्मिल,रोशनसिंह, अशफाक़उल्ला खां, मौलवी अहमदुल्लाह शाह के स्मारकों के निर्माण के लिए उनके प्रयास हम सब जानते हैं।  बीसलपुर में शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा और पार्क का निर्माण,  बरेली में क्रांतिकारी दामोदर स्वरुप सेठ एवं ठाकुर पृथ्वी सिंह उद्यान का निर्माण उनके संघर्ष की उपलब्धियों में शामिल हैं । 1979 में शाहजहांपुर में अखिल भारतीय क्रांतिकारी सम्मलेन उनके इस संघर्ष की नीव मानी जा सकती है।  उन्होंने 1981 में समाचारपत्र “साथी” के चंद्रशेखर आज़ाद विशेषांक, साहित्यिक पत्रिका “संदर्श”, में संपादन में भी अपने जौहर दिखाए हैं । उनका एक अलग पहलू अभिनय भी है । उन्होंने लगातार 20 वर्षों तक नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से समाज के हर तबके से सीधे संवाद स्थापित किया है।  शाहजहांपुर की नाट्य संस्था “विमर्श” के वह अध्यक्ष भी रहे ।
क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास लेखन के लिए उन्हें 1997 का “परिवेश सम्मान” और 2013 का “गणमित्र सम्मान” दिया गया । उनको लेखन के लिए “शमशेर सम्मान” और “अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान” मिला ।  उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर रूहेलखंड विश्वविद्यालय में शोध प्रबंध किया जा चूका है । कविता भारत के सम्पादन में उन पर केन्द्रित एक पुस्तक “ जमीन को देखती आँखें” प्रकाशित हो चुकी है । हम सब उनकी आने वाली पुस्तकों “क्रान्ति की ज़मीन पर” , “भगत सिंह : एक विमर्श” ,”क्रांतिकारी आन्दोलन : एक पुनर्पाठ” का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।  जिनमें यकीनन इतिहास के कुछ अनखुले पन्नो से हम रुबरू हो सकेंगें ।  




Friday, November 28, 2014

महिला उत्पीडन : हालात बदहाल

आज बलात्कार,शारीरिक शोषण से आगे बढ़ कर बात हत्या तक पहुँच चुकी है । कई बार इन घटनाओं के इतने वीभत्स रूप सामने आते हैं कि उनको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता । महिलाओं की  सुघड़ता, कुशलता, प्रखरता एवं योग्यता के बदले उसके रंग-रूप, यौवनकी मानसिकता हावी हो गई है।और इसी  कुत्सित मानसिकता का भयावह दुष्परिणाम आज हमारे सामने बलात्कार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्याएं एवं नारी हिंसा के रूप में सामने आया है । पिछले कुछ दिनों पर नज़र डालें तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश,छत्त्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान ,पश्चिम बंगाल, मिजोरम सहित देश के अलग अलग कोने में नारी के पुरुषों की हवस का शिकार बनने की ख़बरें आई हैं | देश में मे महिलाओ पर ज़ुल्म और रेप की घटनाओ से इंसानियत शर्मसार हुई है स्वयं सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि बलात्कार से पीड़ित महिला बलात्कार के बाद स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती है, और जीवनभर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है, जिसे उसने नहीं किया। ऐसी स्थिति में सामाजिक प्रताड़ना से इनकार नहीं किया जा सकता । उस पर आरोपियों से पहले घर-परिवार से ही दबाव बनना शुरू हो जाता है । लेकिन इस सब के बीच हैं आंकड़ों का सच, जो बताते हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराधों के अलावा अभियुक्तों के विरुद्ध पुख्ता सबूत न होने की वजह से भी उनकी रिहाई हो जाती है
आंकड़े बताते हैं कि 97 फीसदी मामलों में आरोपी महिला का जानकार होता है। उसमे से भी 40 फीसदी करीबी रिश्तेदार या पडोसी होते हैं । विशेषज्ञों की राय में यह एक सामाजिक समस्या है और ऐसे अपराधों पर नकेल कसने के लिए रणनीति बनाना मुश्किल काम है। दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह एक सामाजिक समस्सया है। जिसका वास्तविक हल समाज के बीच से ही आ सकता है । जब पीडिता दबाव और तिरस्कार का सामना करती है , दोषी के बच निकलने के आसार और बढ़ जाते हैं |
कोई घटना होने पर सामाजिक संघटनो का प्रतिरोध सड़कों पर नज़र आता है ।उस वक़्त कार्यवाही के लम्बे चौड़े वायदे होते हैं । तत्पश्चात व्यवस्था फिर उसी ढर्रे पर सवार नज़र आती है । क्या हमें बार-बार बलात्कार की घटना हो जाने के बाद प्रतिवाद और आंदोलन की जरूरत है ? आखिर क्यों नहीं एक सशक्त कानून और उसका पालन करता तंत्र सामने आता ? आखिर क्यों नहीं हमारा समाज पीडिता के पक्ष में , और आरोपी के विरोध में मजबूती के साथ नज़र आता है ?

Thursday, November 27, 2014

निर्यात आवश्यक , पर देशी मूल्य वृद्धि की कीमत पर नही

पिछले चार वर्षों के दौरान अंडे, फलों, दूध, सब्ज़ियों और दूध के दामों में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है मांस और मछली के दाम में तो यह और भी ज्यादा है मांग और आपूर्ति के बीच सामंजस्य भी गड़बड़ाया है । भारत में बहुत सारा अनाज अपर्याप्त और कम गुणवत्ता वाली भंडारण सुविधाओं के चलते सड़ जाता है । हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि एक तरफ गोदामों में अनाज सड़ रहा है और दूसरी तरफ लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। हाल ही में ब्रिटेन स्थित मैकेनिकल इंजीनियर्स इंस्टीट्यूशन द्वारा एक ताज़ा रिपोर्ट में बताया था कि भारत में हर साल खेत से ग्राहकों तक पहुँचने के दौरान अपर्याप्त कोल्ड स्टोरों के कारण 40 प्रतिशत फल औऱ सब्जियां ख़राब हो जाते हैं । इस समस्सया से सरकार को जूझना ही होगा । वरना जमाखोरों के वर्चस्व को नकारना असंभव होगा । शुरूआती दौर में इन्वेस्टमेंट के बाद इस योजना के दीर्घकालिक परिणाम बहुत अच्छे हो सकते हैं । देश में दुग्ध उत्पाद की कमी है किंतु निर्यात बदस्तूर जारी है। देश के लोग कृषि उत्पादों की महंगाई से बेहद त्रस्त हैं, किंतु कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। विदेशी मुद्रा के लिए निर्यात आवश्यक है , पर देशी मूल्य वृद्धि की कीमत पर इसको सराहा नहीं जा सकता ।

काला धन : सफ़ेद बोल

वैश्विक मंदी से दुनिया को बचाने के लिए आज पूरे विश्व के देशों को लगता है कि उनके देश का काला धन यदि निकल कर वापस आ जाए तो मंदी को मात दी जा सकती है। स्विस बैंक सहित तमाम विदेशी बैंकों में जमा काले धन में भारतीयों की हिस्सेदारी ज्यादा है। ऐसे में यहाँ उम्मीदें भी ज्यादा हैं । पर अभी तक विदेशी बैंकों में जमा काले धन को भारत वापस लाने के लिए हमारे पास ठोस कानून और सरकारी इच्छा शक्ति दोनों नहीं है । भाजपा सरकार का प्रमुख चुनावी मुद्दा कालाधन अब उनके लिए ही गले की हड्डी बन चुका है ।

दिसंबर-13 तक स्विस बैंकों में जमा भारतियों के धन का जो आकड़ा है, वह भी चौकाने वाला है। दिसंबर-12 तक के धन के तुलना में 42% ज्यादा है। एक तरफ देश का काला धन विदेशी बैंकों से लाने के लिए के लिए देश में धरना-प्रदर्शन हो रहा था , वहीँ भारत का काला-धन विदेशी बैंकों में ज्यादा जमा हो रहा था । अवैध तरीके से देश के अंदर कमाये गए काले धन को विदेशी बैंकों में जमा कराने में अहम भूमिका निभाने वाले हवाला एजेंट लचर कानून के चलते देश को चूना लगा कर अधिकारियों, नेताओं और उद्योगपतियों के खाते में जमा कर देते हैं।
इस संबंध में किस सरकार ने कितनी कोशिश की, इन कोशिशों का नतीजा क्या निकला और आगे सरकार क्या-क्या उपाय करनेवाली है, इन सवालों के जवाब न तो यूपीए सरकार के पास थे और न ही एनडीए सरकार के पास ही हैं । सबसे बड़ा सवाल ये है कि देश की जनता की नामों में दिलचस्पी तो है लेकिन वो ये भी जानना चाहती है कि पैसे कब आएंगे। क्या विदेश से पैसे लाना सही में काफी मुश्किल काम है ? और क्या नाम में उलझा कर बीजेपी सिर्फ अपने चुनावी वादे को पूरा करने की रस्म भर निभा रही है ? अगर इस काले धन का 10 प्रतिशत हिस्सा भी भारत में आ जाए, तो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो सकता है । ऐसे में गंभीर प्रयास होना जरूरी हैं । काले धन को वापस लाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दे।


Monday, November 24, 2014

दक्षिण भारतीय फिल्मों का अनोखा खलनायक : अदीब नज़ीर

अदीब नज़ीर , दक्षिण भारतीय फिल्मों और रंग मंच का वो नाम है जिसका जूनून और समर्पण , उसको औरों से अलग कर देता है ! अपनी स्थापित दिनचर्या को ठुकरा कर अपने सपने को पूरा करने को आगे बढे अदीब नाज़िर का जन्म दक्षिण भारत के वारंगल (तेलांगना राज्य) में हुआ था ! यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के डिवीज़नल मैनेजर के पद को समय से पहले अलविदा कहके रंगमंच और फिल्मों के लिए पूरा समय देने के फैसले के बाद अदीब नाज़िर का हुनर पूरे निखार पर आ गया !
लगभग 15 तेलगु फिल्मों में खलनायक का रोल करने वाले अदीब नज़ीर   असल ज़िन्दगी में बहुत अच्छे इंसान हैं ! वर्तमान में हैदराबाद के निवासी अदीब की पहली हिंदी फिल्म प्यासी नागिन(1994) थी ! फिल्मों की चमक भरी दुनिया के बाद भी रंगमंच के लिए उनकी प्राथमिकतायें सर्वोपरि रहती हैं ! सामाजिक मुद्दों पर लगातार सांस्कृतिक कार्यक्रम उनकी प्राथमिकता रहती है ! स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के  सम्मान से जुड़े मुद्दे हों , या फिर भूख से बिलखते किसान ! दहेज़ हत्या के विरुद्ध अलख जगाने का मुहिम हो , या फिर देश की सीमा पर शहीद हुए वीरों के परिवार के सहायतार्थ फ़िल्मी सितारों का कोई आयोजन , अदीब नज़ीर हर जगह पूरी तन्मयता से लगे रहते हैं !

अपनी पहली तेलगु फिल्म Mantrala Marri Chettu में मुख्य खलनायक की भूमिका निभाने वाले अदीब समाज में बिखराव को लेकर चिंतित हैं ! अपने 20 वर्ष के फ़िल्मी अनुभव को लेकर अब उन्होंने अपनी कहानी को लेकर निर्देशन करने की ठानी है !

परिंदा आर्ट्स इन्टरनेशनल फिल्म्स के बैनर तले उनकी अगली तेलगु फिल्म Prema Gelupu Kosame Ghani. ..Gaadse Kaadu की तैय्यारी जोर-शोर से चल रही है ! इस फिल्म में सामाजिक ताने बाने में अलगाव का दंश झेल रहे लोगो के लिए एक अच्छा सन्देश है ! अदीब अपनी फिल्म को औरतों पर हो रहे जुर्म के खिलाफ भी हथियार बनाना चाहते हैं ! लेकिन उनकी चिंता साम्प्रदायिकता को लेकर आ रहे अलगाव को लेकर भी कम नहीं है ! वो अपनी फिल्म को हम सब एक हैं का सन्देश देने के लिए सामने लाना चाहते हैं ! उनके साथ इस फिल्म में नमिता , शफी , बैनर्जी , जीवा , ब्रह्मानंद , सुनील,नरेंद्र,पुविषा,हरिका,लक्ष्मन,चिनी,और रवि आदि भूमिका निभा रहे हैं !
(आमिर खुर्शीद मलिक) 

Saturday, November 22, 2014

शाहजहांपुर रंगकर्म की नीव : चंद्रमोहन महेन्द्रू

शाहजहांपुर की रंगयात्रा की नींव के पत्थरों में से एक उल्लेखनीय नाम चंद्रमोहन महेन्द्रू का है ! जनपद में रामलीला के नायाब मंचन हों , या फिर पारसी रंगमंच से प्रभावित ऐतिहासिक नाटकों का दौर ! आधुनिक रंगमंच के तकनीकी पक्षों से सजे-संवरे सामाजिक नाटको का मंचन हो , या फिर राष्ट्रीय स्तर पर शाहजहांपुर के समर्द्ध रंगमंच की पताका फहराने की बात हो , चंद्रमोहन महेन्द्रू का नाम हर जगह ऊँचाइयों पर रहा !

चंद्रमोहन महेन्द्रू का जन्म 19 नवम्बर 1944 को पाकिस्तान में एक पंजाबी क्षत्रिय परिवार में हुआ ! उनका परिवार बंटवारे के बाद देहरादून,लुधियाना होता हुआ 1955 में शाहजहांपुर आ गया ! चंद्रमोहन महेन्द्रू को रंगकर्म विरासत में मिला था ! उनके पिता स्वर्गीय चमन लाल महेन्द्रू एक अच्छे रंगकर्मी और गायक थे ! उनसे मिली प्रेरणा और प्रोत्साहन की बदौलत चंद्रमोहन महेन्द्रू का रुझान धीरे-धीरे रंगकर्म की ओर बढ़ता चला गया ! आर्थिक झंझावातों नें उनकी राह रोकी , पर उनका यह जूनून समय के साथ बढ़ता चला गया ! अपनी पढाई के दौरान ही उन्हें सिकंदर और पोरस नाटक में अभिनय का मौका मिला ! यह उनके रंगमंच का पहला पडाव था ! 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान ऑर्डिनेंस क्लोदींग फैक्ट्री में भर्ती होने का मौका मिला , जिससे परिवार के हालात सुधारने के साथ-साथ रंगमंच से प्रभावी तरीके से जुड़ने का मौका भी जय नाट्यम संस्था के मार्फ़त उन्हें मिल गया !

इसी दौरान शाहजहांपुर में नाटको की सफलता से उत्साहित होकर ऑर्डिनेंस ड्रामेटिक क्लब का गठन किया गया  ! जिसमें चंद्रमोहन महेन्द्रू को अपनी प्रतिभा दिखने का मौका मिला ! 1971 में चंद्रमोहन महेन्द्रू को ऑर्डिनेंस ड्रामेटिक क्लब की रामलीला में प्रवेश मिल गया ! उन्होंने रामलीला में रावण,परशुराम,दशरथ जैसी चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं उन्होंने निभाई ! इस बीच उनका जुडाव जय नाट्यम संस्था से बना रहा ! इसी दौरान शाहजहांपुर के रंगमंच में क्रांतिकारी बदलाव आया ! आधुनिक रंगमंच ने शाहजहांपुर में दस्तक दी ! साहित्यिक संस्था अनामिका नें नाट्य क्षेत्र में पदार्पण किया ! भोपाल के नाट्य निर्देशक कमल वशिष्ठ ने आधुनिक रंगमंच की बारीकियों को एक वर्कशॉप के द्वारा समझाया ! तत्पश्चात असग़र वजाहत के नाटक इन्ना की आवाज का मंचन भी किया गया ! इस मंचन में चंद्रमोहन महेन्द्रू की प्रतिभा का बेहतरीन पक्ष सामने उभर कर आया  ! इसी दौरान चेखव की कहानी गिरगिट का भी मंचन किया गया ! 1984 में आयोजित एक और वर्कशॉप में अमरेन्द्र सहाय अमर ने नाटक कोणार्क को तैयार कराया , जिसकी केन्द्रीय भूमिका के लिए चंद्रमोहन महेन्द्रू को चुना गया ! उन्होंने अपने पात्र के साथ पूरा न्याय किया ! इस नाटक के बाद में कई मंचन भी हुए ! 1985 में एक था गधा उर्फ़ अलादाद खान में भी उनकी भूमिका प्रशंसा का विषय बनी !


1986 में बनी कोरोनेशन के संस्थापक ज़रीफ़ मलिक आनंद नें अपनी पहली प्रस्तुति प्रमोशन के निर्देशन का दायित्व चंद्रमोहन महेन्द्रू को ही सौंपा ! निर्देशन से जुड़ने के बाद उन्होंने जनता पागल हो गई है, छत पुरानी , सिंहासन खाली है आदि कई प्रमुख प्रस्तुतियों को निर्देशन से सवारा !उन्होंने टेलीफिल्म सलाहमें भी काम किया ! 1989 में संस्कृति पर फासीवादी हमले के विरुद्ध हुए प्रदर्शनों में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही !

शाहजहांपुर में नुक्कड़ नाटक को लाने और निर्देशन का सौभाग्य चंद्रमोहन महेन्द्रू को ही मिला ! 1989 में जसम के बैनर तले जागो-जागो के तीन मंचन एक उदाहरण बन गए !राजेश कुमार लिखित नुक्कड़ नाटक हमें बोलने दो ,महेश सक्सेना द्वारा लिखित नाटक दिशा ,सर्वेश्वर दयाल शर्मा रचित बकरी, में उन्होंने निर्देशन किया ! बकरी को अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला ! राजेश कुमार के साथ उन्होंने आखिरी सलाम का संयुक्त निर्देशन किया !प्रेमचंद की पूस की रात के  अपने निर्देशन में रौनक अली के अभिनय से संवरे 50 शो कराये , जोकि अपने आप में एक कीर्तिमान बन गया ! 2005 में भुवनेश्वर के नाटक सिकंदर का निर्देशन,चंद्रमोहन दिनेश की कहानी एक दा विकास खंडे का नाट्य रूपांतरण और निर्देशन ,मीरा कान्त के नाटक भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर का निर्देशन उनकी विशिष्ठ उपलब्धि रही ! इसके अलावा भी ढेरों नाटकों और प्रस्तुतियों में वह भागीदार रहे हैं ! 
 चंद्रमोहन
महेन्द्रू को 1998 में जनपद रत्न से सम्मानित किया गया !इसके अतिरिक्त उन्हें परिक्रमा,संकल्प,गांधी पुस्तकालय, ऑर्डिनेंस ड्रामेटिक क्लब,संस्कृति एकता मंच,द्वारा भी सम्मानित किया गया ! उनको गांगुली स्मृति सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिला ! राष्ट्रीय साहित्य कला संस्थान द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया ! मशहूर फ़िल्मी कलाकार राजपाल यादव ने भी उनके नाटक में काम किया है !चंद्रमोहन महेन्द्रू की रंग यात्रा को कुछ शब्दों में समेटना मुश्किल है !  शाहजहांपुर का रंगकर्म उनके बहुमूल्य योगदान का गवाह है !

Sunday, November 16, 2014

अमन की बात

अमन की बात करना बेहतर रास्ता है ! फिर भी अलगाव की कोशिशों को सोशल मीडिया पर हवा देने का काम कुछ लोग कर रहे हैं ! इस समाज के लिए , इस देश के लिए , और इंसानियत के लिए हमारी कुछ जिम्मेदारियां बनती हैं ! जो हम को निभाना ही चाहिए ! मगर कुछ लोग सच्ची – झूठी बातों को नमक मिर्च लगा कर हवा देते हैं ! हमारी प्रतिबद्धता किसी भी धर्म के लिए हो सकती है ! धार्मिक होना अच्छी बात है ! पर धर्म के अधूरे ज्ञान की पोटली लिए यह लोग धर्म के मूल भाव इंसानियत को भूल जाते हैं ! 
अपराध , सिर्फ अपराध होता है ! इसको धार्मिक पहचान नही दी जा सकती ! दोषी को सजा मिलनी ही चाहिए ! पर दोषी को सजा मिल पाए उससे पहले ही कई निर्दोष दंगों की बलि चढ़ जाएँ ! यह कहाँ की समझदारी है ? अगर हम सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं , अगर हम लिख सकते हैं , तो हमारी कोशिश कुछ अच्छा करने की क्यों नहीं होती ? हम अमन के पैरोकार बन कर क्यों नहीं उबरते ? दुःख देने के बजाय सुख देने का एहसास हासिल कर के क्यों नहीं देख लेते ? जोड़ने का सुख , तोड़ने के दुःख से कहीं बेहतर एहसास होता है !

Saturday, November 15, 2014

मौत का तांडव



छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में नसबंदी शिविर में चले मौत के तांडव ने अनगिनत सवाल खड़े कर दिए है। सरकार द्वारा लगाए गए विशेष शिविर में एक डॉक्टर ने मात्र 6 घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी कर डाली, जबकि नियम के मुताबिक एक दिन में एक डॉक्टर केवल 35 नसबंदी ही कर सकता है। ऑपरेशन की स्थितियों के बारे में अधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें जंग लगे औजार इस्तेमाल किए गए थे। शिविर में इस्तेमाल किये गई दवाइयां मानक के अनुरूप नहीं थी , जो शायद इस घटना की सबसे बड़ी वजह बन गई। बताया जा रहा है कि इन दवाइयों में पेस्टीसाइड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई । यह भयानक घटना ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य सेवा की पोल खोलती है। आखिर इन दवाओं को चुनने की निर्धारित प्रक्रिया को चंद सिक्कों के लिए दरकिनार किये जाने से दर्ज़नों परिवारों को उम्र भर के लिए न भूलने लायक दर्द दे दिया गया ।
लेकिन इससे एक और बड़ा सवाल उभर कर आया है, जिससे मुंह फेरने की कोशिश की जा रही है । शिविरों में की जाने वाली सामूहिक नसबंदी के लिए ट्यूबेक्टमी का चुनाव बिल्कुल गलत है। इसमें औरतों की मौत की घटनाएं पहले भी घट चुकी हैं,लेकिन हमने और हमारी सरकारों ने इसको आज भी जारी रखा है सिर्फ लक्ष्य हासिल करने की चाह से किये जाने वाले इस सरकारी कार्यक्रम से सामाजिक सरोकारों को कितना नुकसान पहुँच सकता है इसकी फ़िक्र किसी स्तर पर दिखाई नहीं पड़ती आंकड़े बताते हैं कि देश भर में होने वाले नसबंदी के मामलों में 95% महिलाओं की संख्या होती है जोकि इस मामले में भी पुरुष प्रधान समाज के  वर्चस्व को ही दर्शाता है जबकि पुरुषों के लिए अपनाई जाने वाली विधि , महिलाओं के लिए अपनाई जाने वाली विधि ट्यूबेक्टमी के मुकाबले काफी आसान और काफी कम जोखिम वाली होती है । लेकिन आम तौर पर शिविरों में महिलाओं को ही  जनसँख्या नियंत्रण के अभियान में बलि का बकरा बनाया जाता है ।अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकारी तंत्र भी सब कुछ जानते हुए भी आँखें मूँद लेता है ।
जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है, लेकिन इसके लिए बेहतर स्वास्थ्य ढांचा विकसित करना होगा और लोगों में जागरूकता बढ़ानी होगी। साथ ही जो प्रदूषित दवाओं का खेल पूरे देश में धड़ल्ले से चल रहा है , उस पर भी लगाम लगाना जरुरी है। वरना इस तरह के हादसों को रोक पाना हमारे बस में नहीं होगा ।  इसके लिए राज्य सरकारों के साथ साथ केंद्र सरकार को भी जरुरी दिशा निर्देश जारी करके कड़ी कार्यवाही को अंजाम देना होगा । गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में इस तरह की दवाओं से मौतों के छुट-पुट मामले होते ही रहते हैं , जिनकी संख्या इस तरह के शिविरों में ही बढ़ी नज़र आती है । लेकिन घटनाएँ तो बदस्तूर जारी हैं । बस देरी हमारे , और हमारी सरकारों के जागने की है ।