आइये आज रूबरू होते हैं किसी ऐसे नाम से ,जिसमें देश के स्वतंत्रता संग्राम
को उसके वास्तविक स्वरुप के साथ उकेरने का जूनून हो । जो सफल नाटककार हो, अभिनेता, लेखक,कवि जैसे
अनगिनत नैसर्गिक तमगे उसमें अपने विशिष्ठ स्वरुप में विराजमान हों । यकीनन ऐसे विलक्षण पैमाने पर सुधीर “विद्यार्थी”
जैसा नाम ही सटीक बैठता है । क्रांतिकारी साहित्य
से अलख जगाने वाला यह लेखक श्रमिक आन्दोलन से लेकर सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी
बेबाक टिप्पणियों के लिए जाना जाता है । “भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का सही मूल्यांकन नहीं हुआ है” ऐसा मानने वाले
सुधीर “विद्यार्थी” ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की परतों को ज़मीनी स्तर पर जा कर
ढूंढा है पैदल यात्रा हो या साइकिल से दूर दराज़ के क्षेत्र में खोजबीन , सुधीर “विद्यार्थी”
नें कोई कसर नहीं छोड़ी । यही कारण है कि क्रांतिकारी साहित्य में उनकी खोज और
कृतित्व अपना बेमिसाल स्थान रखते हैं । इन किताबों और लेखों से शहीदों की दुर्लभ
जानकारियाँ लोगों तक पहुँच पाई । शहीदों के परिवारों तक पहुँच कर उनको आर्थिक
सहायता और सही पहचान दिलवाने में भी उनके प्रयास अनूठे रहे हैं । यकीनन इन सबके
लिए जिस इन्क़लाबी तेवरों की ज़रूरत होती है , वह सुधीर “विद्यार्थी” के अन्दर हैं ।
1 अक्टूबर 1953 को जन्में सुधीर “विद्यार्थी” का पूरा
जीवन भारत की क्रांति गाथा को समर्पित रहा । सुधीर “विद्यार्थी” नें अशफाकउल्ला, रोशन सिंह , भगत सिंह , मौलवी अहमदुल्लाह शाह,बटुकेश्वर
दत्त और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई शहीदों और क्रांतिकारियों पर दर्जनों किताबे लिखीं
हैं । उनके कृतित्व में क्रांतिकारी विरासत को सच्चाई को अगली पीढ़ी तक सही रूप में
पहुचाने का जुनून साफ़ नज़र आता है । उनकी प्रमुख कृतियों में अशफाकउल्ला और उनका
युग, शहीद रोशन सिंह ,उत्सर्ग,भगत सिंह की सुनें, आमादेर विप्लवी, शहीद मौलवी
अहमदुल्लाह शाह,काला पानी का ऐतिहासिक दस्तावेज़,अग्निपुंज जैसे अनगिनत नाम शामिल
है । अपराजेय योद्दा कुंवर भगवान सिंह,मेरा राजहंस,शहीदों के हमसफ़र,गदर पार्टी से
भगतसिंह, क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त,आज
का भारत और भगतसिंह, क्रांति की इबारतें आदि से उनको काफी चर्चा मिली । एनसीआरटी
की कक्षा 11 की पुस्तक साहित्य मञ्जूषा में क्रांति की प्रतिमूर्ति : दुर्गा भाभी,
तथा कक्षा 5 में शहीद रोशन सिंह लेख पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये गए हैं । विभिन्न विश्वविद्यालयों में क्रांतिकारी आन्दोलन पर उनके व्याख्यान सराहे
जा चुके हैं । शाहजहांपुर में शहीद
रामप्रसाद बिस्मिल,रोशनसिंह, अशफाक़उल्ला खां, मौलवी अहमदुल्लाह शाह के स्मारकों के
निर्माण के लिए उनके प्रयास हम सब जानते हैं। बीसलपुर में शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा और
पार्क का निर्माण, बरेली में क्रांतिकारी
दामोदर स्वरुप सेठ एवं ठाकुर पृथ्वी सिंह उद्यान का निर्माण उनके संघर्ष की
उपलब्धियों में शामिल हैं । 1979 में शाहजहांपुर
में अखिल भारतीय क्रांतिकारी सम्मलेन उनके इस संघर्ष की नीव मानी जा सकती है। उन्होंने 1981 में समाचारपत्र
“साथी” के चंद्रशेखर आज़ाद विशेषांक, साहित्यिक पत्रिका “संदर्श”, में संपादन में
भी अपने जौहर दिखाए हैं । उनका एक अलग पहलू
अभिनय भी है । उन्होंने लगातार 20
वर्षों तक नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से समाज के हर तबके से सीधे संवाद स्थापित किया
है। शाहजहांपुर की नाट्य संस्था “विमर्श” के वह
अध्यक्ष भी रहे ।
क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास लेखन के लिए उन्हें
1997 का “परिवेश सम्मान” और 2013 का “गणमित्र सम्मान” दिया गया । उनको लेखन के लिए “शमशेर सम्मान” और “अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान” मिला । उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर
रूहेलखंड विश्वविद्यालय में शोध प्रबंध किया जा चूका है । कविता भारत के सम्पादन में उन पर केन्द्रित एक पुस्तक “ जमीन को देखती
आँखें” प्रकाशित हो चुकी है । हम सब उनकी आने वाली
पुस्तकों “क्रान्ति की ज़मीन पर” , “भगत सिंह : एक विमर्श” ,”क्रांतिकारी आन्दोलन :
एक पुनर्पाठ” का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। जिनमें यकीनन इतिहास के कुछ अनखुले पन्नो से हम
रुबरू हो सकेंगें ।