पचास फीसदी से ज्यादा वोट
पाकर 70 में से 67 सीटें जीतने वाली
पारी “आप” की जीत को सकारात्मक जीत ही माना जाएगा । एक ऐसी जीत जिसमें सभी वर्गों, सभी जातियों का वोट केजरीवाल के हिस्से में ही आया । एक बड़ा
वर्ग जो पुराने दलों की वडा खिलाफी से तंग आ चुके थे , उन्होंने ईमानदारी के आईने
में केजरीवाल को परखना ही बेहतर समझा । इसी वजह से लोकसभा चुनावों और बाद के
विधानसभा चुनावों में चली “मोदी लहर” को “केजरी झाड़ू” से जबरदस्त शिकस्त खानी पड़ी ।जहाँ बीजेपी एक शर्मनाक हार
के साथ पिछड गई , वहीँ कांग्रेस तो अपना वजूद ही खो बैठी ।
उम्मीदों की लम्बी चौड़ी
फेरहिस्त तो अरविन्द केजरीवाल का प्लस पॉइंट बनी ही ,बीजेपी ने ही बीजेपी को हराने
में कम योगदान नही किया ।बीजेपी नेता केजरीवाल को कीड़ा, बंदर, मदारी, चोर, हरामखोर, हरामजादा, झूठा, भगोड़ा बता रहे
थे। सब के सब केजरीवाल की 49 दिन की सरकार को तो कोस रहे थे लेकिन यह नहीं बता रहे
थे कि आठ महीने के राष्ट्रपति शासन के दौरान दिल्ली की जनता के लिए उन्होंने क्या
किया ? खुद प्रधानमंत्री कभी केजरीवाल को नक्सली तो कभी अराजक कह कर इस नकारात्मक
प्रचार का हिस्सा बनते नज़र आये । उधर केजरीवाल मुफ्त पानी, मुफ्त वाई फाई, आधे दाम पर बिजली,
49 दिनों में बंद हो गयी रिश्वतखोरी की बात करते रहे। इन बातो पर बीजेपी खिल्ली
उड़ाने के अंदाज़ में ही नज़र आई । इन सबके बीच अचानक ही किरण बेदी का आना भी भाजपा
के पुराने धुरंधरों के लिए बेचैनी लेकर आया । जिसका असर टंडन के विद्रोह से लेकर
अन्दुरुनी खेमे में कई अवसरों पर नज़र आया ।
एक बड़ी जीत के साथ सत्ता में आये अरविन्द केजरीवाल के ऊपर दबावों और उम्मीदों का बोझ भी कम नही है । 50 फीसदी से अधिक मत पाए केजरीवाल को अपने इस दायित्व को निभाने के लिए सशक्त टीम की जरुरत होगी । जिसको लेकर कई शंकाएं भी चल रही हैं । परन्तु केजरीवाल पर का आत्म विश्वास देखकर लगता है कि वह यह सब संभाल पायेंगे ।
एक बड़ी जीत के साथ सत्ता में आये अरविन्द केजरीवाल के ऊपर दबावों और उम्मीदों का बोझ भी कम नही है । 50 फीसदी से अधिक मत पाए केजरीवाल को अपने इस दायित्व को निभाने के लिए सशक्त टीम की जरुरत होगी । जिसको लेकर कई शंकाएं भी चल रही हैं । परन्तु केजरीवाल पर का आत्म विश्वास देखकर लगता है कि वह यह सब संभाल पायेंगे ।
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