अच्छाइयां
अनगिनत हैं , तो बुराइयाँ भी अनंत हैं। आप कहाँ तक तिकड़मी हिसाब में उलझियेगा। आप
तो बस यह तय कर लीजिये कि आपको क्या चाहिए ? आप सकारात्मकता बटोरते चलिए, या फिर
नकारात्मकता में फिसलते रहिये। यह आभासी दुनिया भी हमारी चिरपरिचित असली दुनिया से
कुछ बहुत अलग नहीं बन सकती। ऐसे में यह नियम यहाँ भी लागू होता है। जिस तरह यहाँ
पर अपनी अच्छाइयों का ढिंढोरा पीटने का चलन जोरो पर है ,उसी तरह अपनी
बुराइयों को चाहे-अनचाहे बयाँ कर जाने की मजबूरी भी चलन में है। अपने को उच्चतर
साबित करते-करते निम्नतर स्तर पर उतरने की होड़ सी लगी है । “हम ही सही हैं” ऐसा सुनने की
आदत डाल लीजिये । या फिर “बहुत कुछ गलत” सुनने को तैयार
हो जाइये । अपनी
आवाज़ बुलंद करने को सोशल मीडिया ने मंच तो दिया , कुछ अच्छी आवाजें भी उठी , सुन
कर अच्छा लगा । लेकिन बहुतायत सुनने और समझने में अटपटी ही नज़र आई । एक बात अक्सर ही
हम अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते आये हैं कि यह दुनिया , कुछ अच्छे लोगों की ही
बदौलत क़यामत से महफूज़ है । जिस दिन यह चुनिन्दा अच्छे लोग “अलविदा” कह देंगे , यह
दुनिया “प्रलय” की गिरफ्त में होगी । पता नहीं क्यों , लेकिन
इस आभासी दुनिया के लिए भी मुझे यही “भ्रम” पाल लेने का मन
करता है । बस यह “कुछ” अच्छी आवाज़े इस आभासी दुनिया को बचाए हुए हैं
, वरना यह सब कुछ ख़त्म हो चुका होता । यह “भ्रम” पालने का “भ्रम” कितना उचित है
या कितना अनुचित , यह तो मै नहीं जानता । लेकिन दिल को बहलाने को तो ग़ालिब यह
ख्याल अच्छा ही है । अच्छे की तलाश में लगे सभी अग्रजों की जय हो !
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