सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!
AMIR KHURSHEED MALIK

Thursday, August 20, 2015

UNSAFE BORDER

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा और सीमा पर पाकिस्तान की ओर से हो रही नापाक हरकतें एक नये किस्म की नाउम्मीदी को जन्म दे रही हैं  । हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ते नज़र आ रहे हैं । उधर भारत-पाक सीमा पर संघर्ष की घटनाएं गंभीर रूप लेती नजर आ रही हैं, लेकिन पाकिस्तान इसे समझने को तैयार नहीं लगता । संघर्ष विराम के बाद भी घुसपैठ को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान वर्ष 2014-15 में संघर्ष विराम उल्लंघन के अपने ही सारे रेकॉर्ड तोड़ चुका है। भारत की नई स्थायी सरकार के आने के बाद उम्मीद बंधी थी कि सीमा पर अशांति के मामले पर लगाम लग सकेगी , पर हालात तो दिन ब दिन और बिगड़ते जा रहे हैं।  पाकिस्तान ने भारत की तरफ सीमा पर अपनी फौजों की तैनाती भी बढ़ा दी है। दोनों देशों की आबादी पूरे विश्व की लगभग एक चौथाई है और दोनों परमाणु ताकत से संपन्न हैं।  ऐसे में इन दोनों देशों में शान्ति और इनकी स्थिरता को विश्व शांति के लिए बहुत अहम माना जाता है। लेकिन इसके बावजूद अन्तराष्ट्रीय समुदाय अभी तक पाकिस्तान पर किसी भी तरह का दबाव बनाने में नाकाम रहा है ।  सीमा पर लगातार जारी इस घुसपैठ और गोलीबारी में पाकिस्तानी फौजों के साथ आतंकवादी गतिविधियों के सम्मिलित होने की बात अक्सर सामने आई है । दुनिया भर से आरोप लगते रहे हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आतंकवादियों का समर्थन करती है ।अपने ही देश में आतंकवादियों को आश्रय देने में पाकिस्तान की नीति के चलते पाकिस्तान को विश्व समुदाय से खरी-खोटी तो सुनने को मिली , पर अमेरिका समेत सारे देश पाकिस्तान में चल रही इन गतिविधियों पर रोक लगाने में नाकामयाब रहे हैं ।   दोनों देशों के बीच कश्मीर विवाद की एक बड़ी जड़ है ,और पाकिस्तान के एक वरिष्ठ राजनयिक का कहना है, “सीमा के दोनों पार खेल खराब करने वाले बैठे हैं, जो शांति नहीं देखना चाहते हैं.” सीमा पर पाकिस्तानी रेंजर्स के साथ लश्कर आतंकियों की मौजूदगी का पता चला है। घुसपैठ और भारत में बड़े आतंकी हमले कराके पाकिस्तानी सेना अपनी अंदरूनी समस्या से ध्यान बंटाना चाहती है।

Friday, August 7, 2015

DUSTBIN


आईये अपने सपनो के एक घर की कल्पना को हकीक़त में बदलते देखने की कोशिश करते हैं ! हमारे घर में क्या कुछ हो सकता है , उसकी रूपरेखा  बना लीजिये ! हमारे छोटे से घर में, जिसमें बहुत खूबसूरत लॉन(LAWN) से अन्दर पहुँचते ही एक ड्राइंगरूम(DRAWINGROOM), हमारे अतिथियों के स्वागत के लिए तैयार होगा ! हमारे परिवार के लिए एक शांत शयनकक्ष(BEDROOM), जिसमें हम सब अपनी नींद पूरी कर सकें ! स्वादिष्ट खाना बनाने के लिए एक रसोई तो होनी ही चाहिए !  लेकिन यह सब कुछ खाली खाली सा लग रहा है ! अब इस खाली पड़े घर में कुछ जरुरत की मुताबिक़ सामान तो इकठ्ठा कर लेते हैं ड्राइंगरूम में कुछ सोफ़े, कुर्सियां तो होनी ही चाहिए ! शयनकक्ष के लिए चारपाई या डबल बेड तो लाना ही पड़ेगा ! कुछ घरेलु जरुरत की  चीज़ें, जैसे किचन के लिए गैस स्टोव आदि बुनियादी जरूरते भी जुटानी पड़ेंगी ! आईये फिर चलते हैं किसी कूड़ाघर में , और तलाश करते हैं अपनी जरुरत का सामान ! क्या ? आप चोंक क्यों गए ! क्या आप अपने घर को कूड़ा घर के सामान से नहीं संजाना चाहेंगे ?
हम अपने घर में तो कोई भी कूड़ा-करकट पसंद नहीं करते ! लेकिन अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग “दिमाग” में पूरे संसार की गन्दगी भरने से कोई गुरेज़ नहीं करते ! जितने भी नकारात्मक विचार संभव हैं , उनको आने देने के लिए हमारे मस्तिष्क के द्वार सदा खुले रहते हैं ! अगर अनजाने में ऐसा हो जाए , तो बात समझ में आती है ! लेकिन अक्सर हम जानते-बूझते चुपचाप नकारात्मकता को स्वीकारते हैं ! जबकि इसका सबसे पहला दुष्प्रभाव हमारे स्वयं के ऊपर ही पड़ना होता है ! जरा सोचिये , जब हम अपने अस्थाई निवास के लिए कूड़ा करकट पसंद नहीं करते हैं ! तो अपने शरीर के विशिष्ठ अंग के साथ यह बर्ताव क्यों ?

Tuesday, August 4, 2015

बयानबाजियों में उलझती राजनीति

आज राजनीति कर्म से आगे बढ़ कर सिर्फ बयानबाजियों में उलझती नज़र आ रही है । अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग पक्षों की बयानबाजियाँ और राजनीतिक दलों की खींचतान के साथ ही माहौल में गर्माहट पैदा हो जाती है। शायद बयान देने वालों का मकसद भी यही हालात पैदा करना होता है । अक्सर ही ऐसे बेतुके बयान सामने आ जाते हैं । हालांकि ऐसे बयानों से सम्बंधित दल फ़ौरन ही किनारा कर लेता है । परन्तु मीडिया में चर्चा पा चूका बयान अपने उद्देश्य को पूरा कने में जुट जाता है किसी भी महानुभाव को संवैधानिक दायरे में ही सार्वजनिक बातचीत को रखना चाहिए। यकीनन यह हालात बदलने चाहिए । देश के संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को संविधान के दायरे में ही हल ढूंढना चाहिए । असंवैधानिक भाषा और असंसदीय आचरण से देश जुड़ता नहीं , बिखरता है । लोगों में उन्माद भरने से मसले सुलझते नहीं , उलझते हैं । 

Sunday, August 2, 2015

development v/s damages

इस तरह के हमारे पास अनगिनत प्रमाण मिल सकते हैं जहाँ इंसान ने प्रकृति को नाराज़ करके आपदा झेली है । यह सिर्फ भारत में ही नहीं है । अमेरिका, चीन, ब्रिटेन जैसी महाशक्तियां भी अपने विकास की कीमत समय-समय पर चुकाती रहती हैं । पिछले कुछ वर्षों में मानसून का चक्र बदला है। जहां ज्यादा वर्षा होती है तो वहां उसका स्तर बढ़ता ही चला जाता है। जहां सूखा पड़ता है तो वह भी शिखर पर पहुंच जाता है। वैज्ञानिकों की राय में इस वक्त हम एक्स्ट्रीम वैदरका सामना कर रहे हैं और ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। हम लोग कुदरत के साथ जो छेड़छाड़ कर रहे हैं, जिस प्रकार उसे बाधित कर रहे हैं, उसका परिणाम हमें इन बढ़ते सैलाब के रूप में देखने को मिल रहा है। पानी रोकने के लिए तालाब जैसे तरीके खत्म होते जा रहे हैं और आबादी पर कोई नियंत्रण नहीं है। ये सब मिलकर समस्या को बढ़ा रहे हैं। विकास की आड़ में प्राकृतिक क्षेत्रों को नुक्सान पहुंचाया गया है। विकास के नाम पर अतिक्रमण का खामियाजा आखिर हमें ही भुगतना पड़ रहा है।