'अच्छे दिन' के वायदे के साथ सत्ता में आए मोदी ने कहा है कि आम लोगों के लिए 'बुरे दिन गए' और बुरा करने वालों के और 'बुरे दिन आएंगे'। उन्हें ध्यान रखना होगा कि पिछली सरकार की नाकामियों
पर एक हद तक ही बात की जा सकती है, अंततः जनता उनकी सरकार के कामकाज को ही कसौटी पर कसेगी।बयानों को पूरे पांच साल
की उपलब्धि नहीं बनाया जासकता । अभी भी चार साल बाकी हैं ।जिसमें करने को मोदी
सरकार के पास काफी कुछ है ।लोगों ने संसद की सीढ़ियों पर आँसुओं को छलकते देखा। देश
का सबसे ताक़तवर नागरिक सड़क पर झाड़ू लेकर निकल सकता है ।देखा कि कैसे मंत्रियों की
क्लास लगाई जा रही है।इन सब बातों का असर देश में तो गया है ।लेकिन अंतिम निर्णय
तो देश के सामूहिक विकास की निष्पक्ष परिभाषा ही तय करेगी ।
सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

AMIR KHURSHEED MALIK
Friday, July 31, 2015
Sunday, July 5, 2015
एक और स्वतंत्रता दिवस
उल्लास और उमंग से भरा एक और स्वतंत्रता दिवस का हमारे सामने आने ही वाला है । यक़ीनन यह गर्व् करने लायक पल होते हैं । आखिर इसी दिन दुनिया के सबसे लोकतंत्र नें अपने अस्तित्व की जंग फतह की था । लेकिन इससे हटकर भी कुछ कड़वी सच्चाइयाँ हैं । हम हिन्दुस्तानियों का एक बड़ा हिस्सा अपने राष्ट्रीय पर्वों को सरकारी छुट्टी से ज्यादा नहीं समझता । हम सबका जो जुड़ाव और उत्साह अपने राष्ट्रीय पर्वों के लिए होना चाहिए , नदारद दिखता है । यह कोई अच्छी स्थिति हरगिज़ नहीं है । अगर हम ईद,होली,दीवाली की ख़ुशी मना सकते है , तो राष्ट्रीय पर्व क्यों अनछुये रह जाते हैं । अपनी गली-मौहल्ले में हम क्यों नहीं बधाईयाँ देते नज़र आते ? क्यों हमारी सक्रियता सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नज़र आती है ? आखिर हमारी देशभक्ति किसी क्रिकेट मैच की मोहताज़ क्यों रहती है ? ऐसे अनगिनत सवाल मुझे परेशान करते हैं । क्या आपको लगता है कि कभी इन सवालों के जवाब ढूंढें जा सकेंगे ?
Saturday, July 4, 2015
आतंकवाद - एक बड़ी समस्या
विश्व के सामने
आतंकवाद एक बड़ी समस्या बन कर आ खड़ा हुआ है । विश्व अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा आतंकवाद
को फैलाने और रोकने के नाम पर खर्च होता है । अनगिनत निर्दोषों की हत्या और बहुमूल्य संपत्ति का नुकसान मात्र राजनितिक
बयानबाजियों के बाद भुला दिया जाता है । दावे अनगिनत किये जाते हैं, पर वास्तविकता यही है की असल समस्या दिन ब दिन विकराल रूप धारण करके हमारे
सामने मौजूद है । इससे निज़ात पाने का न तो अब तक आत्मबल जुटा पाये हैं, और न ही पूरी शक्ति से इस कुचक्र को कुचलने को कोई रणनीति ही बना पाये हैं।
प्रत्येक आतंकी घटना की पुनरावृति के बाद हमारे शासक उन्हीं घिसे-पिटे शब्दबाणों से प्रहार करते हैं, जैसे यह भी रस्म
अदायगी का एक आवश्यक उपक्रम भर रह गया है। जिस अमेरिका ने कभी मजहबी आतंकवाद को रूस के
खिलाफ इस्तेमाल किया और इसे संरक्षण भी दिया था। वो खुद उसी आतंकवाद का शिकार हुआ।
मजहब आधारित आतंकवाद के खिलाफ अभियान में अमेरिका को खरबों डॉलर झोंकना पड़ा।
ओसामा बिन लादेन का सफाया करने में सफलता जरूर मिली, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ खरबों डॉलर झोंकने से
एक खतरनाक स्थिति यह पैदा हुई , कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई। आज इस अमेरिकी
गलती को आज सारा विश्व भुगत रहा है । भारत के लिए यह मामला कुछ ज्यादा ही
महत्वपूर्ण हो जाता है । भारत से लगे देशों में आतंकवाद की फसल दिन दुनी – रात
चौगुनी तरक्की कर रही है । सूचनाओ को इकठ्ठा करने की लम्बी चौड़ी कवायद के बाद भी
हम हादसों को रोक नही पा रहे हैं ।
Friday, July 3, 2015
Thursday, July 2, 2015
Wednesday, July 1, 2015
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