आखिर परिवर्तन की इच्छा हम रखते ही क्यों हैं ? हम ऐसा दिखावा क्यों करते ही है कि हमको प्रगति चाहिए ? जबकि हमारी असल इच्छा सिर्फ और सिर्फ, नियत धारा के साथ स्वयं को बहने देने की होती है । कभी-कभी लगता है कि सिर्फ सरकारों का बदल जाना हमने विकास समझ रखा है । कभी इनको मौका देते हैं , कभी उनको चुन लेते हैं । हम पर कौन राज करेगा यह मौका हमारे पास है , लेकिन वो क्या करेगा , यह तय करने की समझ अभी हम पैदा नहीं कर पाए हैं ।
सामाजिक सशक्तिकरण के प्रयास तो हम करना भी नहीं चाहते , जो कर रहे हैं उनको समर्थन देने का नैतिक दायित्व भी हम निभाना नहीं चाहते । प्रकृति के साथ हुए दुराचार से निर्लज्ज आनंद की अनुभूति तो ग्रहण कर ली । अब दंड भोगने का समय आया तो आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझा दिया । हमने तो सुधार की तरफ क़दम बढ़ाये नहीं , जो करने चले , उनको भी सिरफिरा समझ लिया । आखिर सिर्फ राजनीतिक समझ ही समझदारी का पर्याय क्यों बन गई है ? किसने किसको पछाड़ा , किसने ज्यादा भ्रष्टाचार किया , जैसे विषय ही “सोशल मीडिया” कहलाने वाले मंच पर भी #ट्रेंड बनते हैं । समाज को दिशा दे सकने लायक विषय यहाँ “अनसोशल” समझ लिए जाते है । सत्ताधारी एवं विपक्ष के पैरोकारों की तो लम्बी सूची यहाँ नज़र आती है , लेकिन अपने समाज के ही लिए दो शब्द भी बहुत भारी बन जाते हैं । अभी किसी माननीय को कुछ कह के तो देखिये , मधुमक्खी के छत्ते से हुआ आक्रमण आपको लहुलुहान कर देगा । लेकिन कभी किसी सामाजिक मुद्दे पर जोर लगा के देख लीजिये । अज़ब सी अस्पर्श्यता का बोध आपको सहना पड़ेगा ।
सामाजिक सशक्तिकरण के प्रयास तो हम करना भी नहीं चाहते , जो कर रहे हैं उनको समर्थन देने का नैतिक दायित्व भी हम निभाना नहीं चाहते । प्रकृति के साथ हुए दुराचार से निर्लज्ज आनंद की अनुभूति तो ग्रहण कर ली । अब दंड भोगने का समय आया तो आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझा दिया । हमने तो सुधार की तरफ क़दम बढ़ाये नहीं , जो करने चले , उनको भी सिरफिरा समझ लिया । आखिर सिर्फ राजनीतिक समझ ही समझदारी का पर्याय क्यों बन गई है ? किसने किसको पछाड़ा , किसने ज्यादा भ्रष्टाचार किया , जैसे विषय ही “सोशल मीडिया” कहलाने वाले मंच पर भी #ट्रेंड बनते हैं । समाज को दिशा दे सकने लायक विषय यहाँ “अनसोशल” समझ लिए जाते है । सत्ताधारी एवं विपक्ष के पैरोकारों की तो लम्बी सूची यहाँ नज़र आती है , लेकिन अपने समाज के ही लिए दो शब्द भी बहुत भारी बन जाते हैं । अभी किसी माननीय को कुछ कह के तो देखिये , मधुमक्खी के छत्ते से हुआ आक्रमण आपको लहुलुहान कर देगा । लेकिन कभी किसी सामाजिक मुद्दे पर जोर लगा के देख लीजिये । अज़ब सी अस्पर्श्यता का बोध आपको सहना पड़ेगा ।
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