महानगर की व्यस्तम सड़क पर कुछ लोगों की ‘नासमझी’ से , या फिर किसी ‘तकनीकी खामी’ से लगा जाम धीरे-धीरे कई किमी तक लम्बा
हो जाता है । पीछे की कतार में खड़े सैकड़ों वाहन चालकों को जाम की वजह भी पता नहीं चल
पाती । जिससे उनकी ‘बेचैनी’ लगातार बढती चली जाती है । कुछ देर बर्दाश्त करने के बाद उनकी झुंझलाहट सीधे ‘हार्न’ पर ही निकलती है । जब कि यह अच्छी तरह से
पता होता है कि उनकी यह शोर नुमा आवाज़ , जाम के असली कारक तक नहीं पहुँच पाएगी । जो
कि कई किमी आगे अग्रिम पंक्ति में विराजमान है । बल्कि यह आवाज, बीच में फंसे उस
जैसे अन्य ‘बेचारों’ की बेचैनी और ज्यादा बढ़ा देगी । जो स्वयं
इस इस अव्यवस्था में उनसे बहुत पहले से फंसे हुए हैं । कहीं यह “आधुनिक लोकतंत्र” की परिभाषा तो नहीं है ?
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