सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

AMIR KHURSHEED MALIK
Thursday, March 26, 2015
Thursday, March 19, 2015
“फायदे के वायदे” का बजट
“आम बजट” भी “आम लोगों” की उम्मीदों पर ही
खरा नहीं उतर पाया । यह बजट आम लोगों को “चुनावी वायदे” जैसे “फायदे के वायदे” करता हुआ नजर आया। हालांकि ख़ास लोगों की ज़मात
ने इस बजट का स्वागत किया है । लोकसभा में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आम बजट का
पिटारा तो खोला ,पर मध्यम वर्ग के लोगों को इससे मायूसी ही हाथ लगी। बजट को लेकर
अपेक्षाएं हमेशा रहती हैं, जो इस बार कुछ
अधिक ही थीं, क्योंकि इस सरकार का पहला पूर्ण बजट था। लेकिन इस बजट के बाद लोगों को अच्छे दिन आते
नहीं दिखाई दे रहे। प्रधानमन्त्री द्वारा जिस कडवी दवा का ज़िक्र किया जा रहा था
, शायद उस कडवी दवा की पहली खुराक सामने आ गई है ।
हालांकि बजट को लेकर बड़े उद्योगों की ओर से अधिकतर सकारात्मक प्रतिकिया आई है।
इंडस्ट्री के अधिकतर नुमाइंदे बजट को बेहतर मान रहे हैं । कुल मिलाकर इंडस्ट्री के
ज़्यादातर लोगों ने इस बजट को अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर माना है।इंडस्ट्री के इस
रुख को बजट में कॉर्पोरेट टैक्स की दर 5 प्रतिशत कम करने के बड़े तोहफे की उपज माना
जा सकता है। उधर अमेरिकी मीडिया ने भारत की नई सरकार के पहले पूर्ण बजट को वृद्धि
उन्मुख बताते हुए कहा है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली की घोषणाओं से निवेश को मजबूती
मिलेगी और बुनियादी ढांचे पर जोर बढ़ेगा।
लोगो को अपेक्षाएं थी कि
इस बजट में सामाजिक सुरक्षा व जनता को महंगाई से निजात दिलाना बजट की बुनियादी परिकल्पना
होगी । यदि आम लोगों की दृष्टि से देखें तो इस बार का बजट आम लोगों की आधारभूत
आवश्यकताओं पर खरा नहीं उतरा है। मध्यवर्ग को आयकर सीमा में पिछले बजट में प्रदत्त
सीमा में कोई और छूट ना मिलना अखर रहा है । बढती महंगाई के मद्देनज़र मध्यम वर्ग के
लिए यह छूट सभी विशेषज्ञ आँक रहे थे । नौकरी पेशा और छोटे व्यवसायी के लिए यह छूट
बहुत मायने रखती है । सर्विस टैक्स में बढ़ोत्तरी आम नागरिकों की जेब पर अतिरिक्त
बोझ डालने जैसी ही है। पहले से ही सर्विस टैक्स के दायरे में आये तमाम छोटे धंधे
12.36 प्रतिशत को पिछली सरकार की ज्याद्दती मान रहे थे । लेकिन इस दर को 14
प्रतिशत तक पहुचाने के ऐलान से कीमतों में वृद्धि की संभावना से इनकार नहीं किया
जा सकता । सर्विस टैक्स में वृद्धि की मार का सबसे अधिक असर वेतनभोगियों
और मध्यम वर्ग पर ही पड़नेवाली है। इसी वर्ग ने मोटे तौर पर मोदी के पक्ष में वोट
भी दिया था। अपने बचाव में जेटली का कहना है कि देश का अगर विकास होता है तो उसका
फायदा सभी वर्गों को प्राप्त होता है, जिसमें मध्यम
वर्ग भी शामिल है। दूरगामी प्रभावों को देखा जाए तो कॉरपोरेट सेक्टरों में दी गई 5 फीसदी की छूट से
आने वाले समय में युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर विकसित हो सकते हैं । परन्तु उसके लिए कई और बुनियादी बदलाव भी लाने
होंगे ।अगर पिछले आंकड़ों पर नज़र डालें तो 2005 से 2010
के बीच देश में 270
लाख रोजगार उत्पन्न हुए, परंतु स्व-रोजगार में 250 लाख की कटौती हुई। ऐसे में प्रभावी रोज़गार केवल 20
लाख लोगो
के लिए ही फायदेमंद साबित हुआ । इस अवधि में लगभग 10 करोड़ युवाओं ने अपने कैरियर की शुरुआत की परन्तु केवल 5
प्रतिशत युवाओं को रोजगार मिल
पाया । यही बड़ा अंतर पिछली
सरकार के लिए युवा वर्ग के असंतोष का कारण भी बना ।इस दौरान मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार में 7
प्रतिशत की कटौती हुई थी। हालाँकि यह उन्नत मशीनरी की आमद का संकेत था । पर रोज़गार घटने
का खामियाजा मनमोहन सरकार के लिए चुनौती बन कर सामने आया ।देश की आर्थिक विकास दर बढ़ी, उद्योगों ने लाभ कमाया, सेंसेक्स में उछाल आया, परंतु रोजगार के अवसर कम हो गए।यही स्थिति आगे
नहीं होगी ऐसी कोई ठोस आशा यह बजट भी जगा नहीं पाया है ।
इस बजट में मुद्रा बैकों
की योजना में 1000 करोड़ का निवेश एक
अच्छा कदम है । हालांकि इसको
अधिक विस्तृत रूप दिया जाता तो और बेहतर परिणाम की आशा की जा सकती थी ।जीडीपी के
नाम पर आंकड़ो का खेल जारी है । महंगाई से जनता परेशान हो चुकी है, उसको तुरंत हल की
उम्मीद थी । अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमते कम होने के बावजूद रेल
किराए में कमी का न होना लोगो को अखरा ।लेकिन इससे भी ज्यादा जरुरी वस्तुओं के माल
भाड़े में वृद्धि से महंगाई की एक और दस्तक भी सुनाई पड गई है । भारतीय उपभोक्ता
परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनन्त शर्मा कहते हैं कि बजट में सामाजिक
सुरक्षा व जनता को महंगाई से निजात दिलाना बजट की बुनियादी आवश्यकता होनी चाहिए। वित्त मंत्री कंपनियों को आकर्षित करना चाहते हैं, परंतु वे भूल रहे हैं कि विदेशी निवेशकों द्वारा सस्ते माल का उत्पादन किये जाने से तमाम स्व-रोजगार बंद हो जाते हैं। मेक इन इंडिया यदि वर्तमान स्वरुप में ही सफल हुआ तो भी आम आदमी को रोजगार छिनने के आसार बनेंगे ।मेक इन इण्डिया
की परिकल्पना निःसंदेह अच्छी है , पर उसमें स्थानीय लोगों के रोजगार की भी सुरक्षा
आवश्यक है । वेल्थ टैक्स को खत्म करके एक करोड़ रुपये से ज्यादा की सालाना आमदनीवाले वर्ग पर कर की दर बढ़ने से आम आदमी या मध्यम वर्ग को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इस क़दम का तो
स्वागत किया जाना चाहिए । विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने में विफलता के बाद सरकार ने बजट के जरिये नया कालाधन पैदा होने के खिलाफ कार्रवाई के प्रावधान किये हैं।
बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर खासा जोर दिया गया है। इसके आवंटन में काफी वृद्धि की गयी है।इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा मैन्युफक्चरिंग क्षेत्र के लिए भी इस बजट में काफी कुछ है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास से रोजगार सृजन की संभावनाओं में वृद्धि होगी।लेकिन अगर
वर्तमान ढर्रे पर ही काम किया गया तो रोज़गार में कटौती से इनकार नहीं किया जा सकता
। वित्त मंत्री ने संपत्ति कर को खत्म कर दिया है। हालांकि इसे खत्म करने की बजाय सही तरीके से लागू किया
जाता तो आर्थिक मोर्चे पर सम्पत्ति से उपजे कर का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता था । वित्त मंत्री के दो उद्देश्यों में परस्पर अंर्तविरोध है। वे चाहते हैं कि देश पश्चिमी देशों की तरह विकसित हो जाये। साथ-साथ वे आम आदमी के लिये अच्छे दिन लाना चाहते हैं, यानी रोजगार भी बनाना चाहते हैं। ये दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते हैं। वित्त मंत्री को विश्व अर्थव्यवस्था की इस सच्चाई को अनदेखा नहीं करना चाहिए। बहुराष्ट्रीय और घरेलू बड़ी कंपनियों के सहारे अच्छे दिन नहीं आ
सकते ।
देश में केवल तीन फीसदी लोग ही आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं।यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है । इसलिए कर नहीं देनेवालों पर शिकंजा कसने की जरूरत है। गरीब आदमी के लिए पेंशन स्कीम की घोषणा अच्छा कदम है। इससे करोड़ों गरीबों को सामाजिक सुरक्षा मिल पायेगी। सरकार ने इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा के लिए कुछ और भी घोषणाएं की है।साथ ही, सब्सिडी के बोझ को कम नहीं किया गया है।ऐसी आशंका थी कि बजट में यूरिया की कीमत को बाजार के हवाले किया जा सकता है, लेकिन किसानों के हितों के दबाव को को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया।
देश में केवल तीन फीसदी लोग ही आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं।यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है । इसलिए कर नहीं देनेवालों पर शिकंजा कसने की जरूरत है। गरीब आदमी के लिए पेंशन स्कीम की घोषणा अच्छा कदम है। इससे करोड़ों गरीबों को सामाजिक सुरक्षा मिल पायेगी। सरकार ने इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा के लिए कुछ और भी घोषणाएं की है।साथ ही, सब्सिडी के बोझ को कम नहीं किया गया है।ऐसी आशंका थी कि बजट में यूरिया की कीमत को बाजार के हवाले किया जा सकता है, लेकिन किसानों के हितों के दबाव को को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया।
एक अन्य नीतिगत बदलाव के रूप में देश के बडे़ नौ बंदरगाह ट्रस्टों को आधुनिक और विकसित क्षमता हासिल करते हुए निगमित करने का फैसला लिया गया है। यह एक बड़ी आवश्यकता थी। लेकिन इस कदम से सरकार ने संगठित मजदूर संघों से टकराव का खतरा भी सामने नज़र आरहा है। बडे़ इंफ्रास्ट्रक्चर के महत्वपूर्ण क्षेत्र में वित्त मंत्री ने पिछले साल के आवंटन में 70
हजार करोड़ बढ़ाते हुए 3,17,889
करोड़ की राशि निर्धारित की गयी है। इससे कुछ
बदलाव तो अवश्य आएगा। सरकार रेल, सड़क और सिंचाई परियोजनाओं में निवेश के लिए बांड जारी करेगी, जिस पर कर छूट भी मिलेगी। यह छूट लोगों को बांड खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगी। सुकन्या योजना को
और बेहतर तरीके से प्रोत्साहित किया जा सकता था ।इसी तरह 4000 मेगावाट क्षमता की पांच नये बिजली परियोजनाएं घोषित की गयी हैं । कुदानकुलाम परमाणु बिजली परियोजना की दूसरी इकाई की योजना भी है। अन्य प्रमुख घोषणाओं में सरकार ने अतिरिक्त एक लाख किलोमीटर सड़क बनाने की घोषणा भी की है।ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में आवंटन पांच हजार करोड़ रुपया बढ़ा कर 40,699 करोड़ कर दिया गया है, लेकिन, सरकार ने इसे भवन, सड़क और नहर जैसे निर्धारण करने योग्य लक्ष्यों के साथ जोड़ने की पहल की है। छोटे व्यापारियों के लिए 20 हजार करोड़ रुपये के कोष के साथ एक मुद्रा बैंक की शुरू करने की घोषणा की गयी है। अगर यह सफल होती है, तो यह नये उद्यमियों के लिए बड़ा अवसर होगा । लेकिन व्यवहारिक धरातल पर सिस्टम की जटिलताएं
इसमें रुकावट डाल सकती है ।इसके लिए अगले कुछ महीने सरकार की कार्यशैली ही इन
योजनाओं की दशा और दिशा तय करेगी ।
हर बज़ट में सब्सिडी एक बड़ा मुद्दा होती है
। जिसमें लगभग 3.77 लाख करोड़ रकम खर्च होती है। धूम-धड़ाका बजट की आकांक्षा रखनेवालों के लिए यह बड़ा पकवान है।हर वर्ष बड़े
वायदों और उम्मीदों के बीच मनपसंद योजनाओं को परवान चढ़ाया जाता है । भारत की राजनीतिक व्यवस्था के
कारण हर सरकार को ताकतवर समूहों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे बसर करनेवाले लोगों को सब्सिडी पर खाद्यान्न आपूर्ति भी अहम
मुद्दा बन जाता है। पिछली सरकार की इस योजना पर भाजपा ने काफी हो
हल्ला मचाया था । पर उससे मुंह मोड़ने का साहस नई सरकार भी नहीं कर सकी । इसी तरह
मनरेगा को सरकारी पैसे की फिजूलखर्ची बताने वाली भाजपा भी मनरेगा के पिछले बजट के
प्रावधानों में बढ़ोत्तरी करने को मजबूर हो गई । जब तक सरकारें अपनी कथनी और करनी
में सामंजस्य नहीं लाती , बजट के ढुलमुल प्रभावों से देश विचलित होता रहेगा । जो
भी घोषणाएं और योजनाये सामने लाई जाती हैं, उन पर ठोस क़दम व्यवस्था को दूरुस्त
करते हुए सामने आने चाहिए । ( - आमिर खुर्शीद मलिक)
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