सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!
AMIR KHURSHEED MALIK

Wednesday, July 19, 2017

'शिक्षा दान - महा दान' की अलख जगाते प्रोफ़ेसर संदीप देसाई

मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक प्रोफ़ेसर साहब पिछले कई सालों से भीख मांगते आये है । लोगो की हैरानी उनका हुलिया देख कर बढती है । लेकिन लोगो की हैरानी को अनदेखा कर वो अपना काम शुरू कर देते है । अब लाख टके का सवाल ...... आखिर प्रोफ़ेसर साहब ऐसा कर क्यों रहे हैं ? गरीब तबके के बच्चों के लिए अंग्रेजी माध्यम से स्कूल खोलने का जूनून उनसे कुछ अलग करा रहा है । दुनिया के लिए अनोखा काम कर रहे इन साहब का नाम प्रोफ़ेसर संदीप देसाई है । संदीप देसाई अपनी मैरीन इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद एसपी जैन मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में पढ़ाते थे । सक्षम लोगो को दी जारी शिक्षा और एक सुविधा संपन्न ज़िन्दगी संदीप को रास नही आई । संदीप के ही लफ़्ज़ों में ........., "मैं बचपन से ही समाज के ग़रीब तबके के लिए कुछ करना चाहता था। मैं चैरिटी के ज़रिए बच्चों की शिक्षा में योगदान देना चाहता था । तो मैंने ठान लिया कि ख़ुद घूम-घूमकर पैसे इकट्ठा करूंगा और ग़रीब बच्चों के लिए स्कूल बनवाउंगा." ।
प्रोफ़ेसर साहब हर यात्री से उसी की ज़बान में बात करके इस काम को अंजाम देते हैं। हिंदी, अंग्रेज़ी, गुजराती, मराठी भाषा में बात करके वह अपनी बात यात्रियों तक पहुंचाते आये हैं । संदीप 'विद्या-दान, महा-दान' का संदेश लोगों को देकर उनसे पैसे इकट्ठा करते हैं। जब उन्होंने इस काम की शुरुआत की, तो लोगो को उन पर यकीन ही नहीं हुआ । कई बार पैसे मांगने पर लोग मारने को तैयार हो जाते थे । संदीप देसाई बताते हैं कि इन सब समस्याओं के बावजूद उन्होंने अपना संयम बनाए रखा और धीरे-धीरे वह लोगों को अपने उद्देश्य के बारे में समझाने में कामयाब रहे । प्रोफ़ेसर संदीप देसाई का जो पैसे इकट्ठा करने का तरीक़ा है, उसके लिए उन्हें के जेल तक जाने की नौबत आगई थी । लेकिन जब अदालत को पूरी बात पता चली तो उन्हें छोड़ दिया गया। बाद में रेलवे विभाग ने भी अपने कर्मचारियों को हिदायत दी कि उन्हें तंग ना किया जाए।
एक आरामदायक ज़िन्दगी का मोह त्याग चुके संदीप देसाई के दावे के अनुसार वह अब तक लोकल ट्रेन में घूम-घूमकर एक करोड़ रुपए जमा कर चुके हैं। उनका कहना था, "मेरे काम की चर्चा होने पर कई लोग हमारी मदद को आगे आए। अभिनेता सलमान ख़ान ने कहा मदद का वादा किया , और उसे निभाया भी हैं । अब तक संदीप राजस्थान के उदयपुर ज़िले स्थित सलारा तहसील में दो और सलोंबर में एक स्कूल खोल चुके हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र के यवतमाल और सिंधुदुर्ग ज़िले में भी एक-एक स्कूल खोल चुके हैं। अकाल प्रभावित क्षेत्र से सैकड़ों बच्चे हर स्कूल में पढ़ते हैं। बच्चे इनके स्कूलों में मुफ़्त में अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।
संदीप के इस काम को उनके परिवार में माँ के अलावा किसी का समर्थन हासिल नहीं है । अपने इस जूनून के खातिर उन्होंने शादी भी नहीं की है । लेकिन संदीप खुश हैं कि लोग उनके जूनून में लोग उनका साथ दे रहे हैं । प्रोफ़ेसर संदीप देसाई के ज़ज्बे को हमारा सलाम !


Monday, July 3, 2017

वो दूर देखिये ,
चली आ रही है एक भीड़ ,

दौडती आ रही है एक भीड़

Monday, May 15, 2017

अक्सर ज्ञान की प्राप्ति पिछवाड़े पर लात पड़ने के बाद ही होती है ......
अरे आप क्यों नाराज होने लगे , यह तो विशुद्ध दुनियावी ज्ञान ही है !
अरे भाई इस बात का आपके #कपिल_मिश्रा और सबके #नसीमुद्दीन_सिद्दीकी से कोई सम्बन्ध नही है !

Friday, August 5, 2016

Tribute to Hiroshima and Nagasaki

एक बड़ा धमाका हुआ , लेकिन उसके बाद कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा था । एक धूएँ का सैलाब और आग के दहकते गोले आसमान की तरफ लपके । कई किमी का इलाका एक बड़े भूकंप की तरह हिल गया । किसी की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । आखिरकार पता चला कि अति विकसित एवं मानवता के पोषक होने का दम भरने वाले अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पहले परमाणू बम का दुरूपयोग कर लिया है । कई लाख लाशों के बीच से बच्चों और औरतों की हजारों लाशें सवाल कर रही थी, कि आखिर हम बेगुनाहों पर यह जुल्म क्यों किया गया ? यह तारीख 6 अगस्त 1945 तो आज भी सबको याद है । आज के ही दिन अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था । उस वक़्त हुई तबाही के खौफनाक नजारों की बात तो जाने ही दीजिये, आज भी उस इलाके के बच्चों में परमाणू विकिरण के असर देखे जा सकते हैं । मानवता को शर्मसार करने वाली इस कार्यवाही के बाद भी अमेरिका को सुकून नहीं मिला । इसके तीन दिन बाद यानी 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया । इस बर्बरता से द्वितीय विश्व युद्ध के हालात तो बदल ही गए , जापान को बर्बादी के एक लम्बे दौर से गुजरना पड़ा । अमेरिकी वायु सेना के जिस अधिकारी (राबर्ट लुइस) के विमान से यह परमाणु बम फेका गया था , उसके ही शब्दों में .....
“As the bomb fell over Hiroshima and exploded, we saw an entire city disappear. I wrote in the log of my words: “My God, what have we done?” -Robert Lewis
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद 13 वर्ग किलोमीटर के दायरे में जो कुछ भी था , पूरी तरह उजड़ गया था । शहर में मौजूद 60 प्रतिशत भवन तबाह हो गए थे। शहर की साढ़े तीन लाख आबादी में से एक लाख चालीस हजार लोग मारे गए थे। बहुत सारे लोग बाद में विकिरण के कारण मौत का शिकार हुए। नागासाकी में 74 हजार लोग मारे गए थे । आखिरकार जापान ने 14 अगस्त, 1945 को हथियार डाल दिए । हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के संदर्भ में 'लिटिल ब्वॉय' कहा गया, और नागासाकी के बम को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के संदर्भ में 'फैट मैन' कोडनेम दिया गया। सत्ता,सामर्थ्य, और अहंकार की अति से हुई क्षति का ज्वलंत उदाहरण हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही में नज़र आता है । इस घोर विनाश के परिणामस्वरूप हुए नुकसान का तो आज तक भी अनुमान नहीं लगाया जा सका है । लेकिन उस दिन हुई तबाही से हमने आज भी कुछ सबक लिया हो , ऐसा भी कहीं नज़र नहीं आता ।  जापान के हिरोशिमा शहर के पीस पार्क में एक मशाल हमेशा जलती रहती है। जब तक दुनिया में व्यापक विनाश का एक भी हथियार है, यह मशाल जलती रहेगी ।हम आज भी परमाणू शक्ति को शांति की जगह हथियार के रूप में इस्तेमाल करने को तैयार हैं । काश विनाशकारी उन यादों से हम कुछ सबक ले पायें !
“If the Third World War is fought with nuclear weapons, the fourth will be fought with bows and arrows.” -Louis Mountbatten

उन लाखों बेक़सूर मृतकों को भाव भीनी श्रदांजलि !

Tuesday, May 10, 2016

SOCIAL v/s UNSOCIAL

आखिर परिवर्तन की इच्छा हम रखते ही क्यों हैं ? हम ऐसा दिखावा क्यों करते ही है कि हमको प्रगति चाहिए ? जबकि हमारी असल इच्छा सिर्फ और सिर्फ, नियत धारा के साथ स्वयं को बहने देने की होती है । कभी-कभी लगता है कि सिर्फ सरकारों का बदल जाना हमने विकास समझ रखा है । कभी इनको मौका देते हैं , कभी उनको चुन लेते हैं । हम पर कौन राज करेगा यह मौका हमारे पास है , लेकिन वो क्या करेगा , यह तय करने की समझ अभी हम पैदा नहीं कर पाए हैं ।
सामाजिक सशक्तिकरण के प्रयास तो हम करना भी नहीं चाहते , जो कर रहे हैं उनको समर्थन देने का नैतिक दायित्व भी हम निभाना नहीं चाहते । प्रकृति के साथ हुए दुराचार से निर्लज्ज आनंद की अनुभूति तो ग्रहण कर ली । अब दंड भोगने का समय आया तो आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझा दिया । हमने तो सुधार की तरफ क़दम बढ़ाये नहीं , जो करने चले , उनको भी सिरफिरा समझ लिया । आखिर सिर्फ राजनीतिक समझ ही समझदारी का पर्याय क्यों बन गई है ? किसने किसको पछाड़ा , किसने ज्यादा भ्रष्टाचार किया , जैसे विषय ही “सोशल मीडिया” कहलाने वाले मंच पर भी #ट्रेंड बनते हैं । समाज को दिशा दे सकने लायक विषय यहाँ “अनसोशल” समझ लिए जाते है । सत्ताधारी एवं विपक्ष के पैरोकारों की तो लम्बी सूची यहाँ नज़र आती है , लेकिन अपने समाज के ही लिए दो शब्द भी बहुत भारी बन जाते हैं । अभी किसी माननीय को कुछ कह के तो देखिये , मधुमक्खी के छत्ते से हुआ आक्रमण आपको लहुलुहान कर देगा । लेकिन कभी किसी सामाजिक मुद्दे पर जोर लगा के देख लीजिये । अज़ब सी अस्पर्श्यता का बोध आपको सहना पड़ेगा ।

Tuesday, May 3, 2016

बेशर्म राजनीति

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए बेहतर होता कि भारतीय राजनीति जाति-धर्म, परिवारवाद, क्षेत्रवाद आदि से जुड़े पारंपरिक तिकड़मों में उलझी ना रह कर महंगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी-बेरोजगारी, विकास , शिक्षा आदि आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करती । जिसकी कमी हमेशा नज़र आई है । दरअसल कई सुधारों के बाद भी अभी तक भारतीय जनमानस स्वयं के हित के लिए उतना जागरूक नहीं हो पाया है । आज भी हम ज़हरीले बयानों के ज़रिये ध्रुवीकरण की कोशिश हो , या बेहूदा बयानों से किसी के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने की हरकत हो , जाने-अनजाने आसान शिकार बनते ही हैं । उकसाने की यह कोशिशे लोकतंत्र की मूलभावना के खिलाफ है । लेकिन अफ़सोस , वोट के फायदे का गणित , सही-गलत के आंकलन को हमेशा बौना साबित करता आया है । रही सही कसर चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ की लगातार चिल्लाती आवाज़ पूरी कर देती हैं । क्या इन नेताओं का मकसद सिर्फ दलीय राजनीति का परचम फहराना ही रह गया है ? हमारे राजनीतिक दल सिर्फ सत्ता के ख्वाब पाल कर जायज़-नाजायज़ के फर्क को अनदेखा कर हर रास्ता अपनाने को तैयार हैं । देश को रचनात्मक प्रयासों की जरुरत है , ना कि ज़हर बूझे बयानों की । नफरत को तो इन ज़हरीले बयानों से हवा दी जा सकती है , तरक्की को नहीं । विकास ,अमन और चैन के दरमियाँ ही पनप सकता है , ज़हरीले बयानों के बीच नहीं ।

Monday, April 25, 2016

आखिर मै जागरूक जो हूँ !

गाडी धोने में सैकड़ों लीटर पानी इस्तेमाल करता हूँ ।
गार्डन में पानी डालने के साथ-साथ रोड को भी नहला देता हूँ ।
एक घूँट पानी पीने के लिए भी पूरा गिलास पानी लेता हूँ ।
लेकिन , 
मै शाम होते-होते सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पानी बचाव के सन्देश की अवश्य डालता हूँ !
आखिर मै जागरूक जो हूँ !
येन केन प्रकारेण टैक्स बचाने का हर जतन करता हूँ ।
सुविधा शुल्क देकर काम करवा लेना बेहतर मानता हूँ ।
अगर खुद कोई मौका मिले तो छोड़ता नहीं हूँ ।
लेकिन ,
मै शाम होते-होते सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भ्रष्टाचार के विरोध में अवश्य डालता हूँ !
आखिर मै जागरूक जो हूँ !
मतदान में तो समय की बर्बादी होती है ।
राष्ट्रीय प्रतीकों को तो मै नहीं जानता ,
राष्ट्रीय संम्पत्ति को व्यक्तिगत बनाने का मौका नहीं छोड़ता ।
आन्दोलन में इसको ही निशाना बनाता हूँ ।
लेकिन,
मै शाम होते-होते सोशल मीडिया पर एक पोस्ट देशभक्ति की अवश्य डालता हूँ !
आखिर मै जागरूक जो हूँ !