सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!

सच की तलाश में शुरू हुआ सफ़र.....मंजिल तक पहुंचेगा जरुर !!!
AMIR KHURSHEED MALIK

Sunday, January 31, 2016

एक ऐसा करिश्माई व्यक्तित्व

एक ऐसा करिश्माई व्यक्तित्व , जिसने एक मुट्ठी भर नमक उठाकर स्थापित साम्राज्यवाद को चुनौती देने का काम कर दिया । एक ऐसा अग्रज जिसके हर आन्दोलन, जन आन्दोलन बन गए । एक ऐसा महात्मा जिसने अपनी मज़बूत आवाज़ भी शान्ति से बुलंद की । ऐसे ही थे हमारे "बापू" , जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया । उन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। आज दुनिया उनको सत्य और अहिंसा के महानायक के रूप में पहचानती है । भारत की आज़ादी में उनके महती योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता । गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था। आज हमारे बीच गांधी जी नहीं हैं । लेकिन "बापू" के विचार देश-दुनिया में अपनी जगह बना चुके हैं । अधिकतर उनको और उनके विचार के महत्व को जानते-मानते हैं । वहीँ कुछ नें उनके विरोध को ही उनके विचारों से लड़ने का रास्ता समझ लिया है । वो अपनों के लिए गैरों से लड़े , गैर उनके सम्मान में अपने मुल्कों में स्मारक बनवा रहे हैं । अपने , अपने ही देश में बने स्मारकों और विचारों को नुकसान पहुँचाने में व्यस्त हैं ।
यह पहला अवसर नहीं था जब उनकी उपेक्षा की जा रही है , इतिहास में ऐसे अनेक अवसर आए थे, जब गांधीजी को अकेले छोड़ दिया गया । लेकिन अपनी शांतिपूर्ण वैचारिक दृढ़ता के कारण उन्होंने हर विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को पहले से ज्यादा मजबूती से स्थापित किया । वह अपने विचारों से कभी कोई समझौता नहीं करते थे । अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को उन्होंने सदैव तरजीह दी । जो आज भी उनके विचारधारा के रूप में जिंदा हैं । इसके लिए उन्हें निश्चित ही बड़ा संघर्ष करना पड़ा होगा - पहले अपने से और फिर परिवार से और बाद में समाज से । अफ़सोस यह संघर्ष आज भी जारी है । विनम्र श्रदांजलि ।

Friday, January 15, 2016

धर्म के स्वघोषित झंडाबरदार

ना चाहते हुए भी आज एक सवाल पूछने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ । क्या धर्म की आड़ में हमको कानून तोड़ने की गुप-चुप इज़ाज़त हासिल है ? सवाल अटपटा जरुर लगता है , लेकिन अगर नज़र दौडाएं तो हमको इसमें कडवी सच्चाई नज़र आती है ।धार्मिक जुलूसों में दौड़ते दुपहिया वाहनों पर तीन से लेकर चार तक तो समाने की कोशिश हो, या फिर सड़क पर रास्ता बंद करके होते धार्मिक आयोजन हों , कानून की खिल्ली सरेआम कानून के रखवालों के सामने ही उडती नज़र आती है। इसके साथ ही इन तथाकथित धार्मिकों के चेहरे पर पुलिसिया डंडे को परास्त कर देने का एक अनूठा दंभ भी अक्सर ही नज़र आता है । कई बार यह उन्मादित आचरण दुर्घटनाओं का कारण भी बनते है ।
अवैध क़ब्ज़ा करके दिन ब दिन पनपते आस्था के केन्द्रों की बढती संख्या भी उन परम धार्मिक चेहरों के लिए सवाल ही खड़ा करती हैं । यह लोग धर्म के नाम पर अपनी जान देने का तो दावा कर जाते हैं , पर अपनी आस्था के केंद्र के लिए अपनी निज़ी जगह दान करने को तैयार नहीं होते । शायद हम सबने मान लिया है कि इसके लिए सरकारी जगह पर क़ब्ज़ा ही न्यायोचित तरीका है उदाहरण ढेरों हैं , लेकिन यहाँ पर सिर्फ मूल भावना तक पहुँचने के लिए इन उदाहरणों का ज़िक्र किया गया है ।
अगर बात घर्म की चलती है तो यह मान के चला जाता है कि यह हम सबको सही रास्ते पर चलने की राह दिखाएगा । ऐसे में जब उसकी ही आड़ में बेशर्मी के साथ कानून का उल्लंघन होता नज़र आता है । तब यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि, क्या धर्म कानून के कायदे से अलग किसी प्रथा का समर्थन करता है ? या फिर

धर्म के स्वघोषित झंडाबरदार ही इस परिस्थिति के ज़िम्मेदार हैं ?