एक ऐसा करिश्माई व्यक्तित्व , जिसने एक मुट्ठी भर नमक उठाकर स्थापित
साम्राज्यवाद को चुनौती देने का काम कर दिया । एक ऐसा अग्रज जिसके हर
आन्दोलन, जन आन्दोलन बन गए । एक ऐसा महात्मा जिसने अपनी मज़बूत आवाज़ भी
शान्ति से बुलंद की । ऐसे ही थे हमारे "बापू" , जिन्होंने किसी दूसरे को
सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया । उन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत
में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। आज दुनिया उनको सत्य और अहिंसा के
महानायक के रूप में पहचानती है । भारत की आज़ादी में उनके महती योगदान को
अनदेखा नहीं किया जा सकता । गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे,
और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन
में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें
1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था। आज
हमारे बीच गांधी जी नहीं हैं । लेकिन "बापू" के विचार देश-दुनिया में
अपनी जगह बना चुके हैं । अधिकतर उनको और उनके विचार के महत्व को
जानते-मानते हैं । वहीँ कुछ नें उनके विरोध को ही उनके विचारों से लड़ने का
रास्ता समझ लिया है । वो अपनों के लिए गैरों से लड़े , गैर उनके सम्मान में
अपने मुल्कों में स्मारक बनवा रहे हैं । अपने , अपने ही देश में बने
स्मारकों और विचारों को नुकसान पहुँचाने में व्यस्त हैं ।
यह पहला अवसर नहीं था जब उनकी उपेक्षा की जा रही है , इतिहास में ऐसे अनेक अवसर आए थे, जब गांधीजी को अकेले छोड़ दिया गया । लेकिन अपनी शांतिपूर्ण वैचारिक दृढ़ता के कारण उन्होंने हर विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को पहले से ज्यादा मजबूती से स्थापित किया । वह अपने विचारों से कभी कोई समझौता नहीं करते थे । अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को उन्होंने सदैव तरजीह दी । जो आज भी उनके विचारधारा के रूप में जिंदा हैं । इसके लिए उन्हें निश्चित ही बड़ा संघर्ष करना पड़ा होगा - पहले अपने से और फिर परिवार से और बाद में समाज से । अफ़सोस यह संघर्ष आज भी जारी है । विनम्र श्रदांजलि ।
यह पहला अवसर नहीं था जब उनकी उपेक्षा की जा रही है , इतिहास में ऐसे अनेक अवसर आए थे, जब गांधीजी को अकेले छोड़ दिया गया । लेकिन अपनी शांतिपूर्ण वैचारिक दृढ़ता के कारण उन्होंने हर विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को पहले से ज्यादा मजबूती से स्थापित किया । वह अपने विचारों से कभी कोई समझौता नहीं करते थे । अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को उन्होंने सदैव तरजीह दी । जो आज भी उनके विचारधारा के रूप में जिंदा हैं । इसके लिए उन्हें निश्चित ही बड़ा संघर्ष करना पड़ा होगा - पहले अपने से और फिर परिवार से और बाद में समाज से । अफ़सोस यह संघर्ष आज भी जारी है । विनम्र श्रदांजलि ।